Sunday, 21 May 2017

परम प्रेम ही अनंत का द्वार है जो सदा खुला है ..........

परम प्रेम ही अनंत का द्वार है जो सदा खुला है ..........
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बिना परम प्रेम के कुछ भी नहीं मिलने वाला है चाहे कितने भी ग्रन्थ पढ़ लो, कितना भी जप तप कर लो| अनंत का द्वार सदा खुला था, है, और सदा ही खुला रहेगा| वे लोग धन्य हैं जो इसे समझते हैं| समस्त शिक्षाएँ प्रेरणा मात्र देती हैं| ह्रदय का द्वार तो स्वयं को ही खोलना होगा| एकमात्र उपहार जो हम अनंत को दे सकते हैं वह है हमारा परम प्रेम| बाकि सब कुछ तो उसी का है| परम प्रेम का दूसरा नाम ही भक्ति है|
ॐ ॐ ॐ ||
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आज के इस युग की और निजी जीवन की विकट परिस्थितियों का सदुपयोग कैसे किया जाए यह एक यक्ष प्रश्न और चुनौती है| हम स्वयं परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, महत्व सिर्फ इसी का है| जिस क्षण में हम जी रहे हैं, यह क्षण जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय है |
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जो मान्यताएँ भगवान से डरने की शिक्षा देती हैं वे कुशिक्षा दे रही हैं|
मैं इस भय की अवधारणा का विरोध करता हूँ| भगवान तो परम प्रेम हैं, भय नहीं| भगवान से प्रेम किया जाता है, भय नहीं| भगवान के पास सब कुछ पर एक ही चीज नहीं है जो सिर्फ हम ही दे सकते हैं, और वह है हमारा अहैतुकी परम प्रेम|
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 हे प्रभु, आप ही मेरे प्राण हैं, आप ही यह मैं बन गए हैं| आप सम्पूर्ण अस्तित्व हैं|
अब यह पीड़ा और सहन नहीं हो रही है |
(इस पीड़ा को एक पीड़ित ही समझ सकता है)
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 परमात्मा के साथ कोई औपचारिकता नहीं हो सकती ......
भगवान तो प्रियतम मित्र, प्रियतम सम्बन्धी, और सबसे प्यारे शाश्वत मित्र हैं| उन प्रियतम शाश्वत मित्र के साथ कैसी औपचारिकता ????? वे निकटतम से भी अधिक निकट, और प्रियतम से भी अधिक प्रिय है| उनसे अब कोई औपचारिकता नहीं है| वे तो निरंतर हृदय में हैं, कभी एक क्षण के लिए भी साथ नहीं छोड़ते, उनसे इतना अधिक प्रेम हो गया है कि बस उनके अतिरिक्त अब अन्य कुछ रहा ही नहीं है|
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ॐ ॐ ॐ ||

2 comments:

  1. सारा अस्तित्व ही प्राणमय है| क्या प्राण तत्व को जाना जा सकता है?
    सभी देवी-देवताओं का, सभी जीवों का, सभी प्राणियों का अस्तित्व प्राण से ही है| प्राण के बिना वे निर्जीव हैं| हमारा अस्तित्व भी प्राण ही है|
    क्या प्राण ही ईश्वर की प्रथम अभिव्यक्ति है?
    ॐ ॐ ॐ ||

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  2. जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है|

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