Friday 12 May 2017

अक्षय तृतीया .....

अक्षय तृतीया .....
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वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार:
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।

पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।

हम भारतीयों का ऐसा मानना है कि इस शुभ दिन हम जो भी कार्य करते हैं, उसका फल हमें सदा मिलता रहता है। इसलिए हम लोग इस दिन अपने खजाने को भरते हैं अर्थार्थ ऐसी विधि है कि लोग इस दिन कुछ स्वर्ण कि वस्तु खरीद लेते हैं, क्योंकि उनका ऐसा विश्वास है कि इस दिन खरीदा गया सोना कभी साथ नहीं छोड़ेगा। मुझे इस विचार से कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु बंधुओ ज़रा सोचिये कि इस संसार में ऐसी कौनसी चीज़ है जो हमारा साथ कभी नहीं छोडेगी। यदि वह वस्तु हमसे अलग नहीं होगी तो एक दिन हमें उस वस्तु का त्याग करना होगा, क्योंकि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। यदि कोई ऐसी चीज़ है जो हमेशा हमारे साथ रहेगी, वह जैसा की माननीय कृपा शंकर जी ने बताया, नारायण का नाम। इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इस दिन अपनी तिजोरी को तो भरें पर अपने प्रभु को भी याद कर लें क्यूंकि वास्तविकता में अक्षय तो वही हैं। केवल प्रभु की कृपा ही है, केवल हमारे गुरुजनों का आशीर्वाद ही है और केवल हमारे माता-पिता का प्यार ही है जो हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता। इसलिए 'ॐ नमो भगवते वसुदेवाय' मंत्र का अधिकाधिक जप कीजिये।
बोलो नारायण नारायण हरि हरि..... श्रीमन्नारायण नारायण नारायण.....

बंधुओ, इस अक्षय तृतीया पर लौकिक नहीं अलौकिक को पाने का प्रयत्न करिये। प्रभु का प्रसाद पाइए जो नश्वर नहीं है। हमारा इतिहास हमें दान करना सिखाता है, किसी ज़रूरतमंद को दान दीजिए और उसकी दुआ लीजिए क्यूंकि बुरे वक़्त में पैसा या रिश्ते काम नहीं आते, बुरे वक्त में तो केवल दुआ ही काम आती है...... ॐ नमो भगवते वसुदेवाय ......

यह जैन धर्मावलम्बियों का भी महान धार्मिक पर्व है। इसी दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु शोरडी(गन्ने का रस) से पारायण किया था।

(मिथिलेश द्विवेदी)

1 comment:

  1. अक्षय तृतीया पर किया गया तप अक्षय होता है| सबसे बड़ा तप है ब्रह्म यानि शिवभाव में स्थिति| शिवभाव में स्थिति का नित्य निरंतर अभ्यास सबसे बड़ा तप है|

    शिवभाव में कोई कामना जन्म नहीं ले सकती| कामना ही शैतान है| कामना तभी प्रभावी होती है जब हम उसके साथ एकता का अनुभव करते हैं| अगर हमें यह बोध हो जाये कि "यह किसी दूसरे की कामना है जो मेरे दुःख का कारण बनेगी", तब उसे हम कभी भी पूरा नहीं करेंगे|

    मैं यह देह नहीं, "मैं सर्वव्यापी अनंत परमशिव हूँ" ....यही सर्वश्रेष्ठ भाव है| इसी की धारणा और मानसिक रूप से प्रणव की ध्वनी सुनते हुए कूटस्थ में इसी का ध्यान करें| अन्य सब परिवर्तनशील है, मैं नहीं|

    शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    १८ अप्रेल २०१८

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