Friday 12 May 2017

समर्पण !!! .....

समर्पण !!! ....

अब इतनी शारीरिक और मानसिक क्षमता, उत्साह व ऊर्जा नहीं बची है कि मैं भगवान का ध्यान कर सकूँ | भक्तिभाव में भी संदेह होने लगा है कि कहीं यह आत्म-संतुष्टि के लिए हो रही भावुकता मात्र ही तो नहीं है | यह सोच विचार कर सब कुछ अपनी विवशता में भगवान को ही समर्पित कर दिया कि हे प्रभु, आप जानो और आपका काम जाने, मेरे वश की यह बात नहीं है | अगर साधना ही करानी थी तो उसकी सामर्थ्य भी देते ! अब तो कुछ नहीं चाहिए आपसे |

पर घोर आश्चर्य !!!!!!

सहसा मैंने यह पाया है कि मेरा कुछ करने का भाव तो एक भ्रम मात्र था | सब कुछ तो परम ब्रह्म परम शिव ही कर रहे हैं | वे अपना ध्यान स्वयं ही कर रहे हैं | मैं तो मात्र एक उपकरण था जिसका कोई अस्तित्व अब नहीं रहा है | मैनें तो उनके श्रीचरणों में आश्रय माँगा था, पर उन्होंने तो अपने ह्रदय में ही मुझे बसा लिया है |
हे प्रभु, यह सृष्टि आपके मन का एक विचार या स्वप्न मात्र है | आपके इस विचार या स्वप्न में मेरा आपसे अब कोई पृथक अस्तित्व नहीं है | मेरी अपनी पृथकता यानि मेरापन, सारे संचित कर्मफल, सारी कमियाँ, अच्छाइयाँ, बुराईयाँ, अवगुण, गुण, पाप व पुण्य सब आपको ही बापस अर्पित है | मुझ में इतनी क्षमता नहीं है कि अब और कोई साधना कर सकूँ | आप और मैं एक हैं, और सदा एक ही रहेंगे | जो आप हैं वह ही मैं हूँ, और जो मैं हूँ वह ही आप हैं |

ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ ना कुछ ऐसी घटनाएँ अवश्य होती हैं जिनसे उसे जीवन भर लज्जित होना पड़ सकता है| हर मनुष्य कुछ ना कुछ भूल अवश्य करता है| अतः भूतकाल को भूलकर जब भी याद आये उसी क्षण से अपने आध्यात्मिक विकास की दिशा में अग्रसर हो जाना चाहिए|| भविष्य में होने वाला हर कार्य सर्वश्रेष्ठ होगा यदि हम इसी क्षण से अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बना लें| ॐ ॐ ॐ ||

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