ऊँचे चमचमाते भवन, भव्य साफ-सुथरी सड़कें, और स्वच्छ सुन्दर कपड़े पहिने मनुष्य ही ..... विकास के परिचायक नहीं हो सकते |
वास्तविक विकास के परिचायक हैं ..... उच्च चरित्रवान, स्वाभिमानी, राष्ट्रप्रेमी, परोपकारी, धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ नागरिक | जब ये होंगे तब अन्य सब अपने आप ही हो जाएगा |
वर्षों पहिले एक-दो बार हांगकांग गया था जहाँ की भव्य सड़कें, चमचमाती इमारतें और बाहरी वैभव देखकर बड़ा प्रभावित हुआ था| पर वहाँ के लोगों का जीवन और सोच देखकर निराशा ही हुई| यही अनुभूति मुझे अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर के डाउन टाउन मैनहट्टन में हुई|
वैदिक काल का भारतवर्ष कितना वैभवशाली रहा होगा, इसकी मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूँ| उस कल्पना से ही लगता है कि भारत कितना महान था| उस परम वैभव को हम फिर से निश्चित रूप से प्राप्त करेंगे|
ॐ ॐ ॐ ||
वास्तविक विकास के परिचायक हैं ..... उच्च चरित्रवान, स्वाभिमानी, राष्ट्रप्रेमी, परोपकारी, धर्मपरायण और सत्यनिष्ठ नागरिक | जब ये होंगे तब अन्य सब अपने आप ही हो जाएगा |
वर्षों पहिले एक-दो बार हांगकांग गया था जहाँ की भव्य सड़कें, चमचमाती इमारतें और बाहरी वैभव देखकर बड़ा प्रभावित हुआ था| पर वहाँ के लोगों का जीवन और सोच देखकर निराशा ही हुई| यही अनुभूति मुझे अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर के डाउन टाउन मैनहट्टन में हुई|
वैदिक काल का भारतवर्ष कितना वैभवशाली रहा होगा, इसकी मैं सिर्फ कल्पना ही कर सकता हूँ| उस कल्पना से ही लगता है कि भारत कितना महान था| उस परम वैभव को हम फिर से निश्चित रूप से प्राप्त करेंगे|
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