अक्षय तृतीया पर किया गया पुण्य अक्षय होता है| सबसे बड़ा पुण्य है
ब्रह्म यानि शिवभाव में स्थिति| शिवभाव में स्थिति का नित्य निरंतर अभ्यास
सबसे बड़ा पुण्य है|
शिवभाव में कोई कामना जन्म नहीं ले सकती| कामना ही शैतान है| कामना तभी प्रभावी होती है जब हम उसके साथ एकता का अनुभव करते हैं| अगर हमें यह बोध हो जाये कि "यह किसी दूसरे की कामना है जो मेरे दुःख का कारण बनेगी", तब उसे हम कभी भी पूरा नहीं करेंगे|
मैं यह देह नहीं, "मैं सर्वव्यापी अनंत परमशिव हूँ" ....यही सर्वश्रेष्ठ भाव है| इसी की धारणा और मानसिक रूप से प्रणव की ध्वनी सुनते हुए कूटस्थ में इसी का ध्यान करें| अन्य सब परिवर्तनशील है, मैं नहीं|
शिवभाव में कोई कामना जन्म नहीं ले सकती| कामना ही शैतान है| कामना तभी प्रभावी होती है जब हम उसके साथ एकता का अनुभव करते हैं| अगर हमें यह बोध हो जाये कि "यह किसी दूसरे की कामना है जो मेरे दुःख का कारण बनेगी", तब उसे हम कभी भी पूरा नहीं करेंगे|
मैं यह देह नहीं, "मैं सर्वव्यापी अनंत परमशिव हूँ" ....यही सर्वश्रेष्ठ भाव है| इसी की धारणा और मानसिक रूप से प्रणव की ध्वनी सुनते हुए कूटस्थ में इसी का ध्यान करें| अन्य सब परिवर्तनशील है, मैं नहीं|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०१८
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०१८
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