Saturday 10 November 2018

एक अवधूत संत स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती ......

एक अवधूत संत स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती ......
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स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र सरस्वती एक अवधूत संत थे जिन्होनें संन्यास ग्रहण के पश्चात अपने पूरे जीवनकाल में कभी कोई वस्त्र नहीं पहना, और सदा ध्यानमग्न रहते थे| सदाशिव ब्रह्मेन्द्र को अपने ज्ञान की तीव्रता होने के कारण आरम्भ में तर्क करने का स्वभाव था| अपने तर्कों से वे बड़े बड़े विद्वानों को निरुत्तर कर देते थे| कई विद्वानों ने उनकी शिकायत उनके गुरु स्वामी परमशिवेंद्र सरस्वती से की| गुरुदेव ने सदाशिव ब्रह्मेन्द्र को बुलाकर कहा कि तुम तो सब के मुंह बंद कर देते हो पर तुम स्वयं चुप कब रहोगे? उसी क्षण से सदाशिव ब्रह्मेन्द्र ने आजीवन मौन धारण का व्रत ले लिया|
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वे बिना किसी से कोई बात किये अवधूतावस्था में कावेरी नदी के तट पर घुमते रहते| अधिकाँश समय तो ध्यानमग्न ही रहते| लोगों ने उनके गुरु से उनकी शिकायत की तो गुरु ने यही कहा कि .... "जाने कब मैं भी इतना भाग्यशाली बनूँ|" सदाशिव ब्रह्मेन्द्र ने वेदान्त पर कई पुस्तकें लिखीं और अनेक काव्य रचनाएँ कीं|
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उनके चमत्कारों पर अनेक किस्से दक्षिण भारत में प्रचलित हैं| परमहंस योगानंद ने भी अपनी विश्वप्रसिद्ध पुस्तक "योगी कथामृत" में उनके बारे में बहुत कुछ लिखा है|
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उनका जन्म मदुराई में अठारहवीं शताब्दी में श्रीवत्स गौत्र के श्री मोक्षसोमसुन्दर और श्रीमती पार्वती के घर हुआ था| माता-पिता ने उनका नाम शिवरामकृष्ण रखा था| उनके माता-पिता भगवान रामनाथस्वामी (रामेश्वरम) के भक्त थे| रामेश्वरम भगवान शिव की कृपा से ही उनका जन्म हुआ था|
हमारी भारतभूमि धन्य है जिसने ऐसे महान संतों को जन्म दिया|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
४ नवम्बर २०१८

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