Saturday, 10 November 2018

यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः :----

यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः :----

देश में कई तरह के विवाद चल रहे हैं| मेरी सोच स्पष्ट है, किसी भी तरह का कोई भ्रम या कोई शंका नहीं है| जो राष्ट्र और धर्म के पक्ष में है उसका मैं समर्थक हूँ| जहाँ अधर्म है और जिस से राष्ट्र का अहित है, उसका मैं विरोध करता हूँ| अंततः एक ही बात कहूंगा कि धर्म की जय हो और अधर्म का नाश हो|

"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवानीतिर्मतिर्मम||१८:७८||
(जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं, और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है, वहीं पर श्री विजय विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है||) हर हर महादेव !

2 comments:

  1. जहाँ तक मैं समझता हूँ, जीवन में परमात्मा से अहैतुकी परमप्रेम, समर्पण व आत्मसाक्षात्कार की अवधारणा सनातन धर्म है|

    मैं सनातन धर्म के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हूँ| मैं श्रीअरविन्द के इस विचार से भी पूर्णतः सहमत हूँ कि सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है|

    ॐ ॐ ॐ !!

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