"मरूँ पर माँगू नहीं, अपने तन के काज |
(मर जाऊँ, परन्तु अपने शरीर के स्वार्थ के लिए नहीं माँगूँगा| परमार्थ के लिए माँगने में मुझे लज्जा नहीं लगती)
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हे, प्रभु, मैं यदि तुम से स्वयं के लिए कुछ माँगूँ तो मेरी प्रार्थना कभी भी स्वीकार मत करना| मेरे माध्यम से आप ही साधना कर रहे हो, जो समष्टि के कल्याण के लिए है| साधक, साध्य और साधना में कोई भेद न रहे| मेरी कोई पृथकता न रहे, कोई भेद न रहे, बस सिर्फ तुम रहो और तुम्हारीं ही इच्छा रहे| मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व तुम को समर्पित है|
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ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥ ॐ शांति शांति शांति ||
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अयमात्मा ब्रह्म | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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