Saturday 18 June 2016

परमात्मा अपरिभाष्य है ...

परमात्मा किसी भी तरह के ज्ञान की सीमा से परे हैं| हम उन्हें किसी भी तरह के ज्ञान में नहीं बाँध सकते क्योंकि वे रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श से परे होने के कारण बुद्धि द्वारा अगम्य हैं| सिर्फ श्रुतियां ही प्रमाण हैं|

जिसका अंतःकरण शुद्ध है, वही सिद्ध महात्मा है| अंतःकरण की शुद्धि ही सिद्धि है| अज्ञान की निवृत्ति ही ब्रह्म की प्राप्ति है|

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