पिछले दस वर्षों में भगवान की कृपा और प्रेरणा से जितना मेरी बौद्धिक क्षमता में था, उतना -- भक्ति, ज्ञान और भारत भूमि के ऊपर यथासंभव खूब लिखा है। जो नहीं लिखा, उसकी क्षमता भगवान ने मुझे नहीं दी थी, यानि वह मेरी क्षमता से परे था। भगवान से जैसी प्रेरणा मिलेगी, और जैसी उनकी इच्छा होगी, वैसा ही होगा। यह जीवन तो पूर्णतः परमात्मा को समर्पित है। इसमें "मैं" और "मेरा" कुछ भी नहीं है। सर्वव्यापी परमात्मा ही सर्वस्व है।
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अति शीघ्र ही आने वाला समय कुछ अच्छा नहीं लग रहा, अत्यधिक विनाश के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। हमारी रक्षा हमारा धर्म ही करेगा। हमारा धर्म है परमात्मा को समर्पण, यानि भगवत्-प्राप्ति। हम अपने धर्म का पालन करें। भगवान का यही आदेश है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ||२:४०||" (गीता)
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सभी को नमन !!
आप सब से मिले प्रेम और स्नेह के लिए मैं आप सब का सदा आभारी रहूँगा। कहीं जा नहीं रहा। आप सब के मध्य में निरंतर परमात्मा के साथ एक हूँ। पहले प्रयासपूर्वक भगवान में मन लगाना पड़ता था। अब परिस्थितियाँ बदल गई है, जो अवर्णनीय है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२२
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