जिसे प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा; जिसे भूख लगी है, वही भोजन करेगा ---
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बार बार किसी को भी व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से भक्ति के लिए कहना गलत है। इसमें सिर्फ समय ही नष्ट होता है। जिसके हृदय में परमात्मा को पाने की भूख, प्यास, और तड़प है, जिसके हृदय में अपनी सारी वेदनाओं के पश्चात भी परमात्मा से परम प्रेम है, वह अपने आप ही भक्ति करेगा। ऐसा व्यक्ति दो लाख की जनसंख्या में से कोई एक होता है।
अन्य सब लाभार्थी व्यापारी हैं, जिनके लिए अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए परमात्मा की भक्ति करना एक व्यापार है। उनके लिए भगवान एक साधन है, और संसार साध्य।
जिसको भूख लगी है, वही भोजन करेगा। जिसको प्यास लगी है, वही पानी पीयेगा। जिसके हृदय में परमात्मा को पाने के लिए घोर अभीप्सा (अतृप्त असीम प्यास) है, वही भक्ति करेगा। अतः किन्हीं के पीछे पड़ना ठीक नहीं है।
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अदम्य भयहीन साहस व निरंतर अध्यवसाय के बिना कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती। संसार की उपलब्धियों के लिए जितने साहस और संघर्ष की आवश्यकता है, उस से बहुत अधिक संघर्ष और साहस आध्यात्मिक जीवन के लिए करना पड़ता है।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ स्वस्ति॥ 













कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२२
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