हमारे से भगवान की भक्ति या कोई साधना/उपासना नहीं हो रही है तो हम क्या करें? ---
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प्रिय निजात्मगण, आप भगवान को प्राप्त करना चाहते हैं, और इस दुरूह विषम काल में आपसे कोई साधना/उपासना संभव नहीं हो रही है, तो कोई चिंता की बात नहीं है। भगवान ने आपके लिए भी एक बहुत ही सरल मार्ग प्रशस्त किया है। भगवान कहते हैं कि मेरा नित्य निरंतर स्मरण करते रहो, और मेरी उपस्थिती का आभास सर्वत्र सर्वदा रखो। बस इतना ही बहुत है। भगवान को कभी भी मत भूलो, फिर भगवान स्वयं ही आपके पास चले आयेंगे। क्या इस से अधिक सरल अन्य कुछ हो सकता है?
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भगवान कहते हैं --
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
अर्थात् - "हे पार्थ ! जो अनन्यचित्त वाला पुरुष मेरा सतत स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ॥"
यह आत्मानुसंधान या ईश्वर स्मरण नित्य निरन्तर और अखण्ड होना चाहिये। अनन्य चित्तवाला यानि सदा भगवान में ही समाहित चित्त रहना चाहिये। अनन्य यानि कोई अन्य नहीं है।
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भगवान कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - "इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥"
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भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् - "जो मुझे सर्वत्र देखता है, और सब को मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥"
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अब और क्या कहूँ? यह भगवान को पाने का सरलतम मार्ग है। इससे अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है। इस संसार में कुछ भी निःशुल्क नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। भगवान को पाने की कीमत आपका पूर्ण प्रेम है। भगवान के पास सब कुछ है, सिर्फ आपका प्रेम नहीं है। भगवान प्रेम के भूखे हैं। आप उन्हें अपना पूर्ण प्रेम (Total and unconditional Love) देंगे तो भगवान स्वयं ही आपके पास जहाँ और जैसे भी आप हैं, वहीं चले आयेंगे। यह उनका दिया हुआ वचन है जो कभी मिथ्या नहीं हो सकता।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी,
झूञ्झुणू (राजस्थान)
१८ मार्च २०२२
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