Tuesday, 19 April 2022

धर्म एक ही है और वह है सनातन धर्म; अन्य कोई धर्म नहीं, बल्कि पंथ, मज़हब या रिलीजन हैं ----

 भारत के मनीषियों ने "अभ्यूदय" और "निःश्रेयस" की सिद्धि को ही धर्म बताया है। सार रूप में इसका अर्थ है कि जिस से हमारा सर्वतोमुखी सम्पूर्ण विकास हो, और सब तरह के दुःखों/कष्टों से मुक्ति मिले, वही धर्म है।

.
मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं। महाभारत आदि ग्रन्थों में विस्तार से धर्म को समझाया गया है। लेकिन यह तभी संभव है जब हमारे हृदय में परमात्मा हों। अतः समझ में तो यही आता है कि परमात्मा की चेतना में निरंतर रहने से ही धर्म का प्राकट्य होता है। यही सत्य-सनातन-धर्म का सार है।
"धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥"
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥"
.
भगवान ने जितनी समझ दी है, उसे ही यहाँ व्यक्त कर दिया है। इससे अधिक न तो मैं जानता हूँ, और न ही जानने की क्षमता या सामर्थ्य मुझ में है।
सभी को नमन !! ॐ गुरु !! जयगुरु !!
कृपा शंकर
२० मार्च २०२२
.
पुनश्च :--- एक बात जोर देकर बार बार कहता हूँ की जिस से हमारा सर्वतोमुखी सर्वांगीण सम्पूर्ण विकास हो, और जिस से हमें सब तरह के कष्टों व दुःखों से मुक्ति मिले, वही "धर्म" है। जो उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता वह "अधर्म" है।
भारत में "अभ्यूदय और निःश्रेयस की सिद्धि" को ही कणाद ऋषि के वैशेषिक सूत्रों ने "धर्म" को परिभाषित किया है। इसका अर्थ वही है जो ऊपर दिया हुआ है।
.
धर्म एक ही है और वह है सनातन धर्म। अन्य कोई धर्म नहीं, बल्कि पंथ, मज़हब या रिलीजन हैं। "धर्म" शब्द का किसी भी अन्य भाषा में कोई अनुवाद नहीं हो सकता।
धर्मशिक्षा के अभाव में भारत की युवा पीढ़ी को धर्म का ज्ञान नहीं है। मुझे बड़ी पीड़ा होती है जब आज की युवा पीढ़ी कहती है कि वे किसी धर्म को नहीं मानते।
कृपा शंकर
२१ मार्च २०२२

No comments:

Post a Comment