मेरे से अन्य कुछ भी नहीं है। खुली आँखों से जड़-चेतन जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वह मैं ही हूँ, मेरे सिवाय अन्य कोई भी नहीं है। आँखें बंद कर के भी जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, वह सारी अनंतता मैं स्वयं हूँ। परमात्मा का सारा सौन्दर्य, सारा प्रेम, सारी करुणा और पूर्णता -- मैं ही हूँ। मेरे से अन्य कुछ भी नहीं है।
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मैं यह हाड-मांस की भौतिक देह नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि हूँ। यह समस्त संसार मेरे ही मन का एक विचार मात्र है। जो श्रीहरिः हैं, वो ही मैं हूँ, और जो मैं हूँ, वे ही श्रीहरिः हैं।
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ज्ञान और भक्ति की बातें वे ही समझ सकते हैं जिन में सतोगुण प्रधान है। जिन में रजोगुण प्रधान है वे सिर्फ कर्मयोग को ही समझ सकते हैं। जिन में तमोगुण प्रधान है, वे सिर्फ बाहरी आचरण के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं समझ सकते।
अतः महत्व "गुण" का है। इसे समझने के लिए गीता के १४वें अध्याय का स्वाध्याय करें।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ मार्च २०२२
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