भारत में धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण भी होगा। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड हिन्दू राष्ट्र भी होगा। असत्य का अंधकार भी दूर होगा। हम सदा परमात्मा की चेतना में रहें। यही भगवत्-प्राप्ति है, यही सत्य-सनातन-धर्म का सार है, और यही धर्म का पालन है, जो सदा हमारी रक्षा करेगा। यही हमारा कर्म है और यही हमारी भक्ति है। भगवान स्वयं हमारी चिंता कर रहे हैं।
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हम पराक्रमी, वीर्यवान, निर्भय और हर दृष्टि से शक्तिशाली बनें। महासागर में खड़ी चट्टान की तरह हम अडिग बनें, जो इतनी प्रचंड लहरों के निरंतर आघात से भी कभी विचलित नहीं होती। परशु की सी तीक्ष्णता हमारे में हो जिस पर कोई गिरे, वह तो कट ही जाये, और जिस पर परशु गिरे वह भी कट जाये। स्वर्ण की सी पवित्रता हमारे में हो, जिसे देखकर श्वेत कमल भी शर्मा जाये। ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१९ मार्च २०२२
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