मैं किसी के भी किसी सांसारिक काम का नहीं हूँ। किसी का कोई भी प्रयोजन मुझसे सिद्ध नहीं हो सकता। अतः बेकार में मित्रता अनुरोध भेज कर, या मेरी मित्रता सूचि में बने रह कर, और मेरे आलेख पढ़कर अपना अमूल्य समय नष्ट न करें।
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मैं ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की बातें करता हूँ, जो किसी के काम की नहीं हैं। अतः मुझसे दूरी बनाकर ही रखें। जिन्हें भगवान से अहेतुकी अभिन्न प्रेम (Unconditional integral love) है, वे ही मेरे आसपास टिके रह सकते हैं, अन्य कोई नहीं।
अब चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, हो सकता है उस से यह भौतिक देह नष्ट हो जाये, लेकिन मुझे कुछ भी नहीं होगा। जब तक भगवान की स्वीकृति न हो तब तक मुझे न तो कुछ हो सकता है, और न ही कोई मेरा कुछ बिगाड़ सकता है।
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पूर्व जन्मों में मुक्ति के उपाय नहीं किए, और कोई विशेष अच्छे कर्म नहीं किए, इसलिये इस जीवन में अधर्म का साक्षी बनना पड़ा। लेकिन मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है, न ही किसी की निंदा और आलोचना के लिए मेरे पास कुछ है। यह सृष्टि भगवान की है, मेरी नहीं। इसे अपने नियमों के अनुसार भगवान की प्रकृति चला रही है।
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मैं प्रसन्न, संतुष्ट और तृप्त हूँ। भगवान से भी कुछ नहीं चाहिए। उन्होंने अपने हृदय में स्थान दिया है, तो सब कुछ मिल गया है। और कुछ बचा ही नहीं है। भगवान की सर्वव्यापकता ही मेरा आत्मस्वरूप है। मेरी हर कामना, आकांक्षा, संकल्प या प्रतिज्ञा -- व्यभिचार है, क्योंकि मैं निमित्त मात्र हूँ, कर्ता नहीं। भगवान हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, और सर्वदा मेरे साथ एक हैं। मैं उनके हृदय में और वे मेरे हृदय में हैं। उनके सिवाय मेरा अन्य किसी से कोई संबंध नहीं है।
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पूरी दुनियाँ की खाक़ छानने के बाद पता चला कि ख़ुदा तो ख़ुद ही यह खाक़सार है, जो बड़ा छलिया है !
जय हो !! धन्यवाद। जय श्रीहरिः॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२४ मार्च २०२२
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