Tuesday 19 April 2022

साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य ---

आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमारी दृष्टि समष्टि-दृष्टि हो, न कि व्यक्तिगत। परमात्मा की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर हमारा ध्यान और समर्पण होगा तभी हमारी आध्यात्मिक उन्नति होगी। एक साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य।

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जो बीत गया सो बीत गया, जो हो गया सो हो गया। भूतकाल को तो बदल नहीं सकते, अभी जब से होश आया है, तब इसी समय से परमात्मा की चेतना में रहें। हमारा कार्य परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा का अवतरण हो।

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भगवान हमें निमित्त बनाकर सनातन-धर्म और भारत की रक्षा करें। जिन्होंने आतताइयों के नाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है, वे भगवान श्रीराम हमें अपना उपकरण बनाकर भारतवर्ष और धर्म की रक्षा करें। विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो। असत्य का अंधकार दूर हो। भगवान ने वचन दिया है --
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
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धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। असत्य और अंधकार की शक्तियों का नाश हो। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड राष्ट्र हो। ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२२

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