नित्य सायं और प्रातः, व जब भी समय मिले हर ओर से ध्यान हटाकर अपने मन को आत्म-तत्व (परमात्मा) में स्थित कर अन्य कुछ भी चिंतन न करने का अभ्यास करें। सिर्फ परमात्मा की प्रत्यक्ष उपस्थिती पर ही ध्यान दें। हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व, और यह सारी परम विराट और अनंत सृष्टि वे ही हैं। गीता के छठे अध्याय "आत्म संयम योग" में इसे बहुत अच्छी तरह समझाया गया है। उसका स्वाध्याय करें।
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हम तो निमित्त मात्र, परमात्मा के एक उपकरण हैं, परमात्मा स्वयं ही हमें माध्यम बना कर यह साधना भी कर रहे हैं। कर्ता हम नहीं, स्वयं परमात्मा हैं। हम जो भी कार्य करें, वह पूर्ण मनोयोग व पूर्ण निष्ठा से करें। किसी भी तरह की कोई कमी न छोड़ें। संसार हमारी प्रशंसा करे या निंदा, सारी महिमा परमात्मा की ही है। उन्होंने हमें जहाँ भी रखा है और जो भी दायित्व दिया है उसे हम नहीं, स्वयं वे ही सम्पन्न कर रहे हैं। उन का परमप्रेम (भक्ति) हम सब में साकार हो। ॐ तत्सत्॥ ॐ स्वस्ति॥
कृपा शंकर
२४ मार्च २०२२
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