Saturday 4 September 2021

अपनी पीड़ा और व्यथा किस से कहें? ---

 

अपनी पीड़ा और व्यथा किस से कहें? ---
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🌹🙋‍♂️🌹आप सब निजात्मगण, परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हों| आप सब की कीर्ति, यश और महिमा अमर रहे| परमात्मा की परम कृपा आप सब पर बनी रहे| आप सब की जय हो|
बहुत ही सत्यनिष्ठा से मैंने अपने जीवन का विहंगावलोकन किया तो इस जीवन में कमियाँ ही कमियाँ दिखाई दीं| एक भी कोई अच्छी बात नहीं मिली| अपनी निम्न प्रकृति व अवचेतन को तमोगुण से भरा हुआ पाया| अंधकार ही अंधकार, कहीं कोई प्रकाश नहीं| स्वयं को निरंतर असहाय पाया| पता नहीं, कभी नर्क में भी कहीं स्थान मिलेगा या नहीं, इतनी अधिक कमियाँ स्वयं में पाईं|
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हारे को हरिः नाम !! और करता भी क्या? मेरे एक ही शाश्वत मित्र हैं... भगवान स्वयं, दुःखी होकर उन्हीं को याद किया| वे हर प्रश्न का उत्तर तुरंत दे देते हैं| उन्हीं से उत्तर मिला कि यह सृष्टि, प्रकाश और अंधकार का खेल है, यहाँ पूर्ण प्रकाश भी नहीं हो सकता, और पूर्ण अंधकार भी, अन्यथा यह सृष्टि ही नहीं रहेगी| इस द्वैत से ऊपर उठो जहाँ प्रकाश ही प्रकाश है, अन्य कोई उपाय नहीं है| सारा मार्ग ही प्रशस्त हो उठा, सब कुछ उसी क्षण समझ में आ गया| गीता में वे कहते हैं ...
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
"तुम मच्चित, मद्भक्त और मेरे पूजक (मद्याजी) बनो और मुझे नमस्कार करो; (इस प्रकार) तुम मुझे ही प्राप्त होगे; यह मैं तुम्हे सत्य वचन देता हूँ,(क्योंकि) तुम मेरे प्रिय हो||
सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो|"
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हमारा लोभ और अहंकार ही हमें भगवान से दूर करते हैं| चिंता और भय से मुक्त होने के लिए अपनी पीड़ा भगवान को अकेले में कह कर उन्हें ही समर्पित कर दें| दुनिया के आगे रोने से कोई लाभ नहीं है| लोग हमारे सामने तो सहानुभूति दिखाएँगे पर पीठ पीछे हंसी और उपहास उड़ा कर मजा ही लेंगे| परमात्मा में श्रद्धा और विश्वास रखें व सदा उनसे आतंरिक सत्संग करते रहें| संसार में किसी से भी मिलना तो एक नदी-नाव संयोग मात्र है, और कुछ नहीं| सिर्फ परमात्मा का साथ ही शाश्वत है|अपने लोभ और अहंकार को दूर कर उनके शरणागत हों तो वे हमारी रक्षा करते हैं| वाल्मीकि रामायण में वे कहते हैं ...
""सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||" (वा रा ६/१८/३३)
अर्थात् जो एक बार भी शरणमें आकर ‘मैं तुम्हारा हूँ’ ऐसा कहकर मेरे से रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ, यह मेरा व्रत है
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ऐसे लोगों से दूर रहे जिन्हें भय और चिंता की आदत है, क्योंकि यह एक संक्रामक मानसिक बीमारी है| सकारात्मक और आध्यात्मिक लोगों का साथ करें, सद्साहित्य का अध्ययन करें, परमात्मा से प्रेम करें और उनका खूब ध्यान करें| हरेक व्यक्ति का अपना अपना प्रारब्ध होता है जिसे उसे भुगतना ही पड़ता है, अतः जो होनी है सो तो होगी ही, उसके बारे में चिंता कर के अकाल मृत्यु को क्यों प्राप्त हों? भगवान कहते हैं ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात् अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ|
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महाभारत के शांति पर्व में लिखा है ....
एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः| दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय|| (महाभारत, शान्तिपर्व ४७/९२)
अर्थात् ‘भगवान्‌ श्रीकृष्ण को एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेध यज्ञों के अन्त में किये गये स्नान के समान फल देने वाला होता है| इसके सिवाय प्रणाम में एक विशेषता है कि दस अश्वमेध करने वाले का तो पुनः संसार में जन्म होता है, पर श्रीकृष्ण को प्रणाम करने वाला अर्थात्‌ उनकी शरण में जाने वाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता|'
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दुःखी व्यक्ति को सब ठगने का प्रयास करते हैं| धर्म के नाम पर बहुत अधिक ठगी हो रही है| स्वयं को परमात्मा से जोड़ें, न कि इस नश्वर देह से| समष्टि के कल्याण की ही प्रार्थना करें| समष्टि के कल्याण में ही स्वयं का कल्याण है| बीता हुआ समय स्वप्न है जिसे सोचकर ग्लानि ग्रस्त नहीं होना चाहिए| भगवान की कृपा सब भवरोगों का नाश करती है| अतः उन्हीं का आश्रय लें| अपने जीवन के महत्वपूर्ण रहस्यों को जहाँ तक संभव हो सके, गोपनीय रखना चाहिए| पता नहीं जीवन के किस मोड़ पर, कौन व्यक्ति कब मित्र से शत्रु बन जाये या वह ऐसे लोगों से जा मिले जो हमारे विरोधी हों| अतः अपनी पीड़ा भगवान से ही कहें ताकि कोई चिंता और भय न रहे| वे हमारे सब कष्टों को हरते हैं, उनका नाम ही हरिः है|
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने| प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ सितंबर २०२०

1 comment:

  1. हिन्दू समाज की हर युवती व युवक को अपनी रुचि लेकर सनातन धर्म के ग्रंथों व अपने गौरवशाली इतिहास का शुद्ध रूप में अध्ययन करना चाहिए| वे हर दृष्टिकोण से संगठित और शक्ति-सम्पन्न बनें|
    भारत का एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र तो बनना निश्चित है, जिसे कोई नहीं रोक सकता| सनातन धर्म ही भारत की भावी राजनीति होगा| लाखों लोग इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए साधना कर रहे हैं| उनका संकल्प अवश्य पूर्ण होगा| मेरा भी यही संकल्प है|

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