अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों के पारस्परिक आर्थिक हित .....
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्थायी शत्रु-मित्र नहीं होते| आपसी सम्बन्ध अब सिर्फ आर्थिक हितों से ही तय होते हैं| इसके दो उदाहरण दूंगा| (सिर्फ एक आत्मघाती देश पकिस्तान ही है जो जिहाद के नाम पर भारत से शत्रुता रखे हुए है).
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(१) सऊदी अरब और इजराइल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के कारण लगातार मित्र बनते जा रहे हैं, जो कभी मज़हब के नाम पर एक-दूसरे के घोषित शत्रु थे| कुछ समय पूर्व सऊदी अरब और ईरान के मध्य युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी पर युद्ध नहीं हुआ| इसका एक कारण सऊदी अरब और इजराइल के मध्य हुई एक गोपनीय दुरभिसंधि भी है कि यदि ईरान, सऊदी अरब पर आक्रमण करता है तो इजराइल की वायुसेना अपनी पूरी शक्ति से ईरान पर आक्रमण कर देगी और सऊदी अरब, इजराइल को पूरा सहयोग देगा||
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पिछले सप्ताह बुधवार को सऊदी अरब के दो तेलवाहक जहाजों पर, यमन और जिबूती व इरिट्रिया के मध्य अदन की खाड़ी के मुहाने पर २९ किलोमीटर चौड़े "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को पार करते समय, यमन के ईरान समर्थित हाऊथी विद्रोहियों ने हमला कर दिया था, जिससे एक जहाज को कुछ नुकसान हुआ| इस घटना पर सऊदी अरब की प्रतिक्रिया से पहिले ही इजराइल ने तुरंत ईरान को गंभीर युद्ध के परिणामों की चेतावनी दे दी, जिसका तुरंत प्रभाव पड़ा| हमला हुआ था सऊदी अरब के जहाज़ों पर, पर प्रतिक्रिया व्यक्त हुई उसके मित्र देश इजराइल द्वारा|
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इस मार्ग से नित्य ४.८ मिलियन बैरल कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का परिवहन होता है| इजराइल के प्रधानमंत्री ने इस तरह की किसी भी घटना की पुनरावृति होने, या "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को ईरान द्वारा बंद किये जाने पर पूर्ण युद्ध की चेतावनी दे दी है जिसमें सऊदी अरब और अमेरिका भी इजराइल के साथी होंगे| एक बात और है कि सऊदी अरब के लिए अब फिलिस्तीन का कोई महत्त्व नहीं रह गया है|
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(२) दूसरा उदाहरण चीन का दे रहा हूँ| चीन ने अपने देश में इस्लाम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है| वहाँ मुसलमानों के सारे कब्रिस्तानों को खोदकर ताबूतों को नष्ट किया जा रहा है, और लाशों को जलाया जा रहा है| मुसलमान औरतें बुर्का या हिजाब नहीं पहिन सकतीं, पुरुष दाढ़ी नहीं रख सकते, अज़ान और नमाज़ पर पाबंदी लगा दी गयी है, मज़हबी शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, और पवित्र कुरान शरीफ की सारी व्यक्तिगत प्रतियाँ पुलिस द्वारा जब्त कर ली गयी हैं|
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आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी इस्लामी देश ने इसका विरोध करने का साहस नहीं किया है| पकिस्तान जैसे चरम कट्टर इस्लामी देश ने जो चीन को अपना परम मित्र मानता है, ने भी विरोध करने का साहस नहीं किया है| पाकिस्तान चीन के कर्ज के नीचे दबा हुआ है| पाकिस्तान शायद ही कभी चीन का कर्जा उतार पायेगा| मध्य एशिया के कजाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान नाम के इस्लामी देश जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती है, भी चीन से प्रभावित हैं| वे देश अब सिर्फ नाम के ही इस्लामी रह गए हैं, वहाँ के लोग स्वतः ही धीरे धीरे अपने मज़हब को छोड़ रहे हैं|
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इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही बताना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय मित्रता और शत्रुता ..... आर्थिक हितों से ही होने लगी है, न कि किन्ही मज़हबी कारणों से|
इस लेख के सभी पाठकों को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०१८
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई स्थायी शत्रु-मित्र नहीं होते| आपसी सम्बन्ध अब सिर्फ आर्थिक हितों से ही तय होते हैं| इसके दो उदाहरण दूंगा| (सिर्फ एक आत्मघाती देश पकिस्तान ही है जो जिहाद के नाम पर भारत से शत्रुता रखे हुए है).
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(१) सऊदी अरब और इजराइल अपने आर्थिक और सामरिक हितों के कारण लगातार मित्र बनते जा रहे हैं, जो कभी मज़हब के नाम पर एक-दूसरे के घोषित शत्रु थे| कुछ समय पूर्व सऊदी अरब और ईरान के मध्य युद्ध की सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी पर युद्ध नहीं हुआ| इसका एक कारण सऊदी अरब और इजराइल के मध्य हुई एक गोपनीय दुरभिसंधि भी है कि यदि ईरान, सऊदी अरब पर आक्रमण करता है तो इजराइल की वायुसेना अपनी पूरी शक्ति से ईरान पर आक्रमण कर देगी और सऊदी अरब, इजराइल को पूरा सहयोग देगा||
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पिछले सप्ताह बुधवार को सऊदी अरब के दो तेलवाहक जहाजों पर, यमन और जिबूती व इरिट्रिया के मध्य अदन की खाड़ी के मुहाने पर २९ किलोमीटर चौड़े "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को पार करते समय, यमन के ईरान समर्थित हाऊथी विद्रोहियों ने हमला कर दिया था, जिससे एक जहाज को कुछ नुकसान हुआ| इस घटना पर सऊदी अरब की प्रतिक्रिया से पहिले ही इजराइल ने तुरंत ईरान को गंभीर युद्ध के परिणामों की चेतावनी दे दी, जिसका तुरंत प्रभाव पड़ा| हमला हुआ था सऊदी अरब के जहाज़ों पर, पर प्रतिक्रिया व्यक्त हुई उसके मित्र देश इजराइल द्वारा|
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इस मार्ग से नित्य ४.८ मिलियन बैरल कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का परिवहन होता है| इजराइल के प्रधानमंत्री ने इस तरह की किसी भी घटना की पुनरावृति होने, या "बाब अल-मंडाब" जलडमरूमध्य को ईरान द्वारा बंद किये जाने पर पूर्ण युद्ध की चेतावनी दे दी है जिसमें सऊदी अरब और अमेरिका भी इजराइल के साथी होंगे| एक बात और है कि सऊदी अरब के लिए अब फिलिस्तीन का कोई महत्त्व नहीं रह गया है|
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(२) दूसरा उदाहरण चीन का दे रहा हूँ| चीन ने अपने देश में इस्लाम पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया है| वहाँ मुसलमानों के सारे कब्रिस्तानों को खोदकर ताबूतों को नष्ट किया जा रहा है, और लाशों को जलाया जा रहा है| मुसलमान औरतें बुर्का या हिजाब नहीं पहिन सकतीं, पुरुष दाढ़ी नहीं रख सकते, अज़ान और नमाज़ पर पाबंदी लगा दी गयी है, मज़हबी शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है, और पवित्र कुरान शरीफ की सारी व्यक्तिगत प्रतियाँ पुलिस द्वारा जब्त कर ली गयी हैं|
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आश्चर्य की बात यह है कि किसी भी इस्लामी देश ने इसका विरोध करने का साहस नहीं किया है| पकिस्तान जैसे चरम कट्टर इस्लामी देश ने जो चीन को अपना परम मित्र मानता है, ने भी विरोध करने का साहस नहीं किया है| पाकिस्तान चीन के कर्ज के नीचे दबा हुआ है| पाकिस्तान शायद ही कभी चीन का कर्जा उतार पायेगा| मध्य एशिया के कजाकस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान नाम के इस्लामी देश जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती है, भी चीन से प्रभावित हैं| वे देश अब सिर्फ नाम के ही इस्लामी रह गए हैं, वहाँ के लोग स्वतः ही धीरे धीरे अपने मज़हब को छोड़ रहे हैं|
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इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही बताना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय मित्रता और शत्रुता ..... आर्थिक हितों से ही होने लगी है, न कि किन्ही मज़हबी कारणों से|
इस लेख के सभी पाठकों को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०१८
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