Wednesday 8 August 2018

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....

मेरे आराध्य देव भगवान परमशिव हैं .....
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वे सर्वव्यापी, अनंत, पूर्ण, परम कल्याणकारी और परम चैतन्य हैं| मैं धन्य हूँ कि वे मेरे कूटस्थ हृदय में नित्य निरंतर बिराजमान हैं| सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उन का नृत्य है, उनके माथे पर चन्द्रमा ... कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का, उन के गले में सर्प ... कुण्डलिनी महाशक्ति का, उन की दिगंबरता ... सर्वव्यापकता का, उन की देह पर भस्म ... वैराग्य का, उन के हाथ में त्रिशूल ... त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का, उन के गले में विष ... स्वयं के अमृतमय होने का, और उन के माथे पर गंगा जी ... समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है| उन के नयनों से अग्निज्योति की छटाएँ निकल रही हैं, वे मृगचर्मधारी और समस्त ज्ञान के स्त्रोत हैं| अपनी जटाओं पर उन्होंने सारी सृष्टि का भार ले रखा है| वे ही मेरे परात्पर परमेष्ठी सदगुरु हैं| मेरी चित्तवृत्तियाँ उन्हीं को अर्पित हैं|
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हे मेरे कुटिल मन, ऐसे भगवान परमशिव को छोड़कर तूँ क्यों संसार के पीछे भाग रहा है? वहाँ तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा| तूँ उन परमशिव का निरंतर ध्यान कर| तुझे अन्य किसी कर्म की क्या आवश्यकता है?
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१८

2 comments:

  1. यह श्रावण का पवित्र माह है जो भगवान शिव की आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ है|
    आजकल देश का वातावरण बहुत अधिक प्रदूषित हो रहा है| माया का आवरण बहुत अधिक गहरा रहा है| एक अनावश्यक अनुपयोगी जातिवादी बहस देश में चल रही है|

    इस सारे प्रपंच को छोड़कर सिर्फ एक बात अपनी पूरी ईमानदारी से अपने हृदय से पूछें कि राष्ट्र और समष्टि के हित में हम अपना सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं| अपना हृदय जो उत्तर दे उसी का अनुशरण करें| हृदय कभी झूठ नहीं बोलता| अपने मन की न सुनें|

    ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    ५ अगस्त २०१८

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  2. मेरे इष्टदेव भगवान परमशिव सदा मेरे साथ एक हैं| मैं उनकी अनंतता व परमप्रेम हूँ, यह नर देह नहीं| मेरी हर सांस उनकी सांस है| साँसों के मध्य के शांत संधिक्षणों में वे सदा मेरे समक्ष प्रत्यक्ष हैं| वे ही मेरे परमेष्ठी परात्पर गुरु हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ शिव !

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