भारत एक अधोमुख जागृत शक्ति त्रिकोण है। कन्याकुमारी -- मूलाधार चक्र है। इसी मूलाधार से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं। कैलाश पर्वत सहस्त्रार है। "भारतभूमि -- आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है।" इसे कोई भूमि का टुकड़ा ही न समझें।
भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं, अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा। वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी आध्यात्मिक साधना द्वारा जागृत करनी होगी। हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। ॐ ॐ ॐ !!
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ॐ अहं भारतोऽस्मि ---
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"मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" ---
ॐ ॐ ॐ ||
---- स्वामी रामतीर्थ ---
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भारतवर्ष स्वयं में है| इसे स्वयं में पहचानो| ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !!
मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
१४अगस्त २०२१
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