Monday, 16 August 2021

"विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" और "अखंड भारत संकल्प दिवस" ---

 

आज "विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस" और "अखंड भारत संकल्प दिवस" भी है। अखंड भारत कोई कल्पना नहीं, हमारा विचारपूर्वक किया हुआ संकल्प है, जिसे फलीभूत करने को प्रकृति की प्रत्येक शक्ति बाध्य होगी। हमारी श्रद्धा, विश्वास और आस्था कभी विफल नहीं हो सकती। कोई हमारे विचारों से सहमत हो या नहीं हो, हम अपने विचारों पर दृढ़ हैं।
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श्रीअरविन्द के शब्दों में भारत एक भूमि का टुकड़ा, मिटटी, पहाड़, और नदी नाले नहीं है। न ही इस देश के वासियों का सामूहिक नाम भारत है। भारत एक जीवंत सत्ता है। भारत हमारे लिए साक्षात माता है जो मानव रूप में भी प्रकट हो सकती है। भारत का अखंड होना उसकी नियति है। वर्तमान में भारत के अनेक टुकड़े हो गए हैं, जिनमें से सबसे बड़ा टुकड़ा India है, फिर बाकि अनेक। लेकिन भारत की आत्मा एक है, अतः भारत का अखंड होना निश्चित है।
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भारत के पतन के जो भी कारण रहे हों, यहाँ पर उनकी समीक्षा नहीं करेंगे, क्योंकि भूतकाल बापस नहीं आ सकता। हमारी आध्यात्मिक धरोहर हमें निरंतर प्रेरणा देगी, और हम भारत के प्राचीन वैभव को दुबारा प्राप्त करेंगे। हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली बन कर, अपने संकल्प को साकार करेंगे। केवल भारत की आत्मा ही इस देश को एक कर सकती है, जिसके साथ हम एक हैं। भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बैठ रही है, और अपने भीतर और बाहर छाए असत्य के अंधकार को दूर कर अपने शत्रुओं का विनाश कर रही है। भारत अखंड होगा, धर्म की पुनर्स्थापना और वैश्वीकरण भी होगा।
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पुनश्च:
भारत ही सत्य सनातन धर्म है, और सत्य सनातन धर्म ही भारत है। भारत की आत्मा ही धर्म है। धर्म के बिना भारत नहीं है, और भारत के बिना धर्म नहीं है। धर्म की रक्षा स्वयं भगवान करते हैं ---
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत| अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||४:७||"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||४:८||"
"हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ||"
"साधु पुरुषों के रक्षण, दुष्कृत्य करने वालों के नाश, तथा धर्म संस्थापना के लिये, मैं प्रत्येक युग में प्रगट होता हूँ"
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भारत की मेरी अवधारणा है -- जो विभा में रत है, वह भारत है| विभा कहते हैं -- ज्योति की उन अति सूक्ष्म रेखाओं के प्रवाह को जो प्रज्वलित पदार्थों में से निकलकर चारों ओर फैलती हैं| भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करती है| भारत की चेतना सारी सृष्टि को परमात्मा की चेतना में रत कर रही है| परमात्मा का प्रकाश यहाँ से चारों ओर फैल रहा है| भारत अखंड हो और असत्य का अंधकार यहाँ से सदा के लिए दूर हो| परमात्मा से हम यह प्रार्थना करते हैं की वे भारत भूमि में फिर से अवतरित हों|
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१४ अगस्त का दिन शोक का दिन है, मातम का, इस अपराध बोध का कि हमने इस दिन पाकिस्तान नाम के एक राक्षस को जन्म दिया था| इसके लिए मनुष्यता का इतिहास भारत के तत्कालीन राजनीतिक-तंत्र को कभी क्षमा नहीं करेगा|
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भारत को स्वतंत्रता (सत्ता-हस्तांतरण) मिली भी तो किस मूल्य पर? भारत माता की दोनों भुजाएँ पकिस्तान के रूप में काट दी गईं, लाखों परिवार विस्थापित हुए, लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएँ हुईं, लाखों निर्दोष असहाय महिलाओं का बलात्कार हुआ, और लाखों असहाय लोगों का बलात् धर्मांतरण हुआ| क्या इन सब बातों को भुलाया जा सकता है? यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार था|
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भारत अखंड होगा तो सैनिक शक्ति के बल पर नहीं, अपितु एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के बल पर होगा। वह आध्यात्मिक शक्ति हमें स्वयं को अपनी आध्यात्मिक साधना द्वारा जागृत करनी होगी। हमारे निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। वन्दे मातरम्॥ भारत माता की जय॥
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वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।
कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।
तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।
 
१४ अगस्त २०२१

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