Monday 16 August 2021

हमारा एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है, अन्य सब मायावी आवरण हैं ---

 

हमारा एकमात्र सम्बन्ध परमात्मा से है, अन्य सब मायावी आवरण हैं ---
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परमात्मा से जुड़कर हम सम्पूर्ण सृष्टि से जुड़ जाते हैं। परमात्मा की अखण्डता, अनंतता और पूर्णता पर ध्यान से चैतन्य में आत्मस्वरूप की अनुभूति होती है। उस आत्मानुभव की निरंतरता ही मुक्ति है, वही जीवन है और उससे अन्यत्र सब कुछ मृत्यु है। आत्मानुभव ही दिव्य विलक्षण आनंद है। एक बार उस आनंद की अनुभूति हो जाने के पश्चात उस से वियोग ही सबसे बड़ी पीड़ा और मृत्यु है। उस आत्मानुभव का स्वभाव हो जाना हमारे मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
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बाहरी संसार का एक प्रबल नकारात्मक आकर्षण है, जो हमारी चेतना को अधोगामी बनाता है। इस अधोगामी चुम्बकत्व से रक्षा सिर्फ भगवान के निरंतर स्मरण द्वारा ही हो सकता है। जिन लोगों की नकारात्मक चेतना हमारे मार्ग में बाधक है, उन लोगों का साथ विष की तरह तुरंत त्याग दें। कौन क्या सोचता है, इसकी बिलकुल भी परवाह न करें। किसी भी नकारात्मक टिप्पणी पर ध्यान न दें, उसे अपनी स्मृति से निकाल दें। अपना लक्ष्य सदा सामने रहे। सदा निष्ठावान और अपने ध्येय के प्रति अडिग रहें। वासनात्मक विचार उठें तो सावधान हो जाएँ, और अपनी चेतना को सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा ऊर्ध्वमुखी कर लें। सदा प्रसन्न रहें। शुभ कामनाएँ॥
ॐ तत्सत्॥ गुरु ॐ॥ जय गुरु॥
कृपा शंकर
१२ अगस्त २०२१

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