भोजन वो ही करेगा जिसे भूख लगी हो। भूख लगने पर भोजन भी स्वयं को ही करना पड़ेगा। दूसरों के द्वारा किए गए भोजन से स्वाद का पता नहीं चलता, पेट भी नहीं भरता, और क्षुधा भी शांत नहीं होती। ।
.
आत्मा की परमात्मा के लिए जब अभीप्सा जागृत होती है, तब अभीप्सा की शांति उपासना से होती है, और उपासना बिना श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और वैराग्य के नहीं होती। यह सत्य है कि भक्ति ही माता है, जिसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं।
.
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥१८:७८॥"
जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं, और जहाँ धनुर्धारी अर्जुन है, वहीं पर -- श्री, विजय, विभूति और ध्रुव नीति है, ऐसा मेरा मत है॥
१६ अगस्त २०२१
No comments:
Post a Comment