Monday, 16 August 2021

स्वधर्म और परधर्म में क्या अंतर है? ---

 

स्वधर्म और परधर्म में क्या अंतर है? --- गीता में भगवान कहते हैं कि स्वधर्म में निधन श्रेयस्कर है, और परधर्म में भयावह है। अतः विचार करते हैं कि स्वधर्म और परधर्म क्या है।
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हम यह देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। आत्मा का धर्म है - भगवान की प्राप्ति। भगवान की भक्ति जो भगवान की ओर ले जाए वह ही 'स्वधर्म' है। भगवान की भक्ति करते करते यानि भगवान को स्मरण करते करते मर जाना ही स्वधर्म में निधन है।
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काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर्य, चुगली, परनिंदा, परस्त्री व पराये धन की कामना 'परधर्म' है, जो मनुष्य को परमात्मा से दूर ले जाता है। भगवान से विमुख होना ही 'परधर्म' है।
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अतः चुनाव आपका है कि आप स्वधर्म में मरेंगे या परधर्म में।
१२ अगस्त २०२१

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