Monday, 16 August 2021

हमारा लोभ और हमारी अधोगामी काम-वासनायें ही शैतान हैं ---

 

"शैतान" हमें अब और विफल नहीं करे। हमें विजयी होना है। हमारी विजय "भारत" और "धर्म" की विजय होगी।
शैतान कौन है? --
हमारा लोभ और हमारी अधोगामी काम-वासनायें ही शैतान हैं। यह शैतान ही हमें परमात्मा से विमुख करता है। शैतान कोई राक्षस या बाहरी शक्ति नहीं, हमारे मन का असीम लोभ और अतृप्त वासनायें हैं। अतृप्त रहने पर वे क्रोध को जन्म देती हैं। क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है, और मनुष्य का पतन हो जाता है। ये ही मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु हैं।
जिन लोगों का उद्देश्य ही अपनी कामवासना और लोभ को तृप्त करना है, वे शैतान के अनुयायी हैं। आज का अधिकांश विश्व इन्हीं से भरा हुआ है।
इन से बचने का एक ही मार्ग है, और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना। यह अति गंभीर विषय है जिसे गुरुकृपा से ही समझा जा सकता है। सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो। यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है। ॐ तत्सत् !
१४ अगस्त २०२१

1 comment:

  1. पूर्णता हमारा लक्ष्य है, पूर्णता सिर्फ परमात्मा में है। परमात्मा से एक हुए बिना कोई कभी पूर्ण नहीं हो सकता। पूर्णता कहीं बाहर नहीं, भीतर ही है। पूर्णता की खोज में मनुष्य ने पूंजीवाद, साम्यवाद (मार्क्सवाद), और समाजवाद जैसे सिद्धांत बनाए, पर इनसे मानव जाति का कुछ भी हित नहीं हुआ, उल्टा भयानक विनाश ही विनाश हुआ है। अपने अहं की तुष्टि केलिए मनुष्य बड़े-बड़े भवन बनाता है, बड़ी बड़ी शानदार कारें और विलासिता का खूब सामान खरीदता है, बड़ी बड़ी क्लबों का सदस्य बनता है, पर अंततः कुंठित और असंतुष्ट होकर ही मरता है, क्योंकि पूर्णता वह अपने से बाहर ढूँढता है।

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