Monday 16 August 2021

अब हम भारत का स्वतन्त्रता दिवस २१ अक्तूबर को या ३० दिसंबर को क्यों नहीं मना सकते? ---

 

स्वतन्त्रता दिवस --- अब हम भारत का स्वतन्त्रता दिवस २१ अक्तूबर को या ३० दिसंबर को क्यों नहीं मना सकते? ---
.
२१ अक्तूबर १९४३ को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी थी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मंचूरिया और आयरलैंड ने मान्यता दे दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप समूह इस अस्थायी सरकार को दे दिये थे। सुभाष बोस उन द्वीपों में गये, और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया।
३० दिसंबर १९४३ को पोर्ट ब्लेयर के जिमखाना मैदान में पहली बार स्वतन्त्र भारत का ध्वज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा फहराया गया था।
.
इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफ़ग़ानिस्तान में महान् क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप ने आज़ाद हिन्द सरकार और फ़ौज बनायी थी जिसमें ६००० सैनिक थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली में क्रान्तिकारी सरदार अजीत सिंह ने 'आज़ाद हिन्द लश्कर' बनाई तथा 'आज़ाद हिन्द रेडियो' का संचालन किया।
जापान में रासबिहारी बोस ने भी आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह को बनाया था|
इन सभी का लक्ष्य भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना था।
.
१५ अगस्त १९४७ तो भारत का विभाजन दिवस था। १५ अगस्त १९४७ का दिन भारत के लिए एक कलंक था, क्योंकि उस दिन भारत के दो टुकड़े हुए, लाखों लोगों की हत्या हुई, लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार हुए और करोड़ों लोग विस्थापित हुए। इस दिन लाशों से भरी हुई कई ट्रेन पाकिस्तान से आईं जिन पर खून से लिखा था .... Gift to India from Pakistan। १९७६ में छपी पुस्तक Freedom at midnight में उनके चित्र भी दिये दिये हुए हैं। वह कलंक का दिन भारत का स्वतन्त्रता दिवस नहीं हो सकता। यह विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा सामूहिक नरसंहार था।
निश्चित रूप से हमें यह भी नहीं पता कि भारत में सता का हस्तांतरण हुआ था या पूर्ण स्वतन्त्रता मिली थी
.
१५ अगस्त को प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और महान योगी श्रीअरविंद का जन्म दिन था। उनका जन्म १५ अगस्त १८७२ को हुआ था। उन्होने भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर उनका साक्षात्कार किया, और भारत की स्वतन्त्रता का वरदान मांगा। ३० मई १९०९ को उत्तरपाड़ा (बंगाल) में "धर्म रक्षिणी सभा" के वार्षिक अधिवेशन में उनके द्वारा दिये गए भाषण को प्रत्येक भारतीय द्वारा पढ़ना चाहिए। यह एक सर्वश्रेष्ठ लेख है, जो मैंने अपने पूरे जीवनकाल में पढ़ा है। इसमें उन्होंने अपने जेल-जीवन का आध्यात्मिक अनुभव और सच्ची राष्ट्रीयता का संदेश दिया। इसमें उन्होंने बताया है कि सच्चा हिंदू धर्म, सच्चा सनातन धर्म क्या है और आज के संसार को उसकी क्यों आवश्यकता है।
.
भारत विभाजन की प्रक्रिया में अपना सब कुछ छोडकर केवल धर्म की रक्षा के लिये खंडित भारत की शरण में आकर उपेक्षा का जीवनयापन किये हुए विस्थापित हिन्दुओ का शतशः आभार ! अभिनंदन ! धन्यवाद ! जिन हिन्दुओ का सब कुछ लूटा गया, जो नरसंहार व अमानवीय अत्याचारों में मारे गये, जिन्होंने अपने प्राण दे दिये पर धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया उन बलिदानी वीर परिवारों का आज विस्मरण नहीं करें। जीवन के अंत तक आप सब का वंदन करेंगे। अखंड भारत बना के रहेंगे !!
.
तेरा गौरव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें !! भारत माता की जय !!
वन्दे मातरं ! जय हिन्द ! जय भारत !
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०२१

No comments:

Post a Comment