Friday, 6 April 2018

राष्ट्र के वर्तमान दुखद परिदृश्य के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं ....

राष्ट्र के वर्तमान दुखद परिदृश्य के लिए हम स्वयं ही उत्तरदायी हैं क्योंकि हम में से अनेक ने अब तक अपना मत ..... जाति, मजहब, शराब की बोतल, कुछ रुपयों, या अंधी भावुकता के वशीभूत होकर दिया है| जब तक प्रखर राष्ट्रवादी, निष्ठावान, कार्यकुशल व समर्पित शासक नहीं होंगे, हम ऐसे ही कष्ट पाते रहेंगे| हमारा निश्चयपूर्वक किया हुआ दृढ़ संकल्प राष्ट्र की रक्षा कर सकता है|
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हम धर्म और राष्ट्र रक्षा के लिए भी साधना करें| धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है| हमारा सर्वोपरि कर्त्तव्य है धर्म और राष्ट्र की रक्षा, जिसे हम परमात्मा को समर्पित होकर ही कर सकते हैं| हमें अपने साधन पूजन में भी अपने घर परिवार व स्वयं के साथ साथ --- ''राष्ट्र और धर्म के कल्याण के लिए'' भी संकल्प जोड़ना चाहिए| हमारी साधना से एक दैवीय शक्ति का प्रादुर्भाव होगा , जो '' राष्ट्रहित '' में कार्य करने के लिए हमारे ''बल और बुध्दि'' को प्रखर करेगी| आज हमें आवश्यकता है एक ब्रह्म तेज की | जो इस बात को समझते हैं वे समझते हैं, जो नहीं समझते हैं उन्हें समझाया भी नहीं जा सकता|
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यह कार्य हम स्वयं के लिए नहीं अपितु भगवान के लिए कर रहे हैं| मोक्ष की हमें व्यक्तिगत रूप से कोई आवश्यकता नहीं है| आत्मा तो नित्य मुक्त है, बंधन केवल भ्रम मात्र हैं| ज्ञान की गति के साथ साथ हमें भारत की आत्मा का भी विस्तार करना होगा| यह परिवर्तन बाहर से नहीं भीतर से करना होगा| वर्तमान में जब धर्म और राष्ट्र के अस्तित्व पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे है तब व्यक्तिगत कामना और व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु साधना उचित नहीं है| भारत की सभी समस्याओं का निदान हमारे भीतर है| एक बात ना भूलें कि भारत की आत्मा सनातन हिन्दू धर्म है| सनातन हिन्दू धर्म ही भारत की अस्मिता है| भारत का अस्तित्व ही सनातन धर्म के कारण है| सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारत भी नहीं बचेगा और यह सृष्टि भी नष्ट हो जाएगी| सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है|
निरंतर यह भाव रखें कि हम स्वयं ही अखंड भारतवर्ष हैं और हम स्वयं ही सनातन धर्म हैं| पूरा भारत हमारी देह है जो विस्तृत होकर समस्त सृष्टि में फ़ैल गया है| हमारी हर साँस के साथ भारत का विस्तार हो रहा है, असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो रहा है, व भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हो रही है| हमारा संकल्प परमात्मा का संकल्प है| एक व्यक्ति का दृढ़ संकल्प भी पूरी सृष्टि की दिशा बदल सकता है, फिर हमारा संकल्प तो परमात्मा का संकल्प है| हमारे शिव संकल्प के सम्मुख असत्य व अन्धकार की शक्तियों का नाश हो जाएगा|
भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जिनकी अभीप्सा और ह्रदय की तड़फ ऐसे लोगों की हैं जो जीवन में पूर्णता चाहते हैं, जो अपने नित्य जीवन में परमात्मा को व्यक्त करना चाहते हैं| भारत की आत्मा आध्यात्मिक है और एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति भारत का पुनरोत्थान करेगी| भगवान को कर्ता ही नहीं, दृष्टा और दृश्य भी बनाइये| 'कर्ता' तो जगन्माता स्वयं 'काली' है जो यज्ञ रूप में हमारे कर्मफल श्रीकृष्ण को अर्पित करती है| वे 'कर्ता' ही नहीं 'दृष्टा' और 'दृश्य' भी हैं| भगवन श्रीकृष्ण का अभय वचन है ----- "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि |"
अपना चित्त मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर लेगा| भगवान श्रीराम का भी अभय वचनं है ---
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं ममः ||"
एक बार भी जो मेरी शरण में आ जाता है उसको सब भूतों (यानि प्राणियों से) अभय प्रदान करना मेरा व्रत है|
हमें मार्गदर्शन मिलेगा और रक्षा भी होगी| भगवान हमारे साथ है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१४

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