Monday, 24 January 2022

ॐ विश्वं विष्णु: ----

 विष्णु सहस्त्रनाम का आरंभ "ॐ विश्वं विष्णु:" शब्दों से होता है। इन तीन शब्दों में ही सारा सार आ जाता है। आगे सब इन्हीं का विस्तार है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह पूरी सृष्टि यानि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही विष्णु है। जो कुछ भी सृष्ट या असृष्ट है, वह सब विष्णु है। हम विष्णु में विष्णु को ढूंढ रहे हैं। ढूँढने वाला भी विष्णु है। एक महासागर की बूंद, महासागर को ढूंढ रही है। यह बूंद समर्पित होकर स्वयं विष्णु है।

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"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥१॥"
जिसका यज्ञ और आहुतियों के समय आवाहन किया जाता है उसे वषट्कार कहते हैं। भूतभव्यभवत्प्रभुः का अर्थ भूत, वर्तमान और भविष्य का स्वामी होता है। सब जीवों के निर्माता को भूतकृत् कहते हैं, और सभी जीवों के पालनकर्ता को भूतभृत्। आगे कुछ बचा ही नहीं है। ॐ ॐ ॐ !!
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"ॐ विश्वं विष्णु: ॐ ॐ ॐ" --- बस इतना ही पर्याप्त है पुरुषोत्तम के गहरे ध्यान में जाने के लिए।।
१५ जनवरी २०२२

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