(प्रश्न) : हमारी मौन प्रार्थना निश्चित रूप से कब सुनी जाती है?
(उत्तर) : संध्या काल में। (संध्याकाल क्या है? इसे समझाने का प्रयास कर रहा हूँ)
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एक बड़े रहस्य की बात है। हमारे भाव ही हमारी मौन प्रार्थनाएँ हैं। साधनाकाल में कुछ क्षण ऐसे भी आते हैं जब हमारी प्रार्थनाएँ निश्चित रूप से दैवीय शक्तियों तक पहुँचती हैं, और वे हमारा कल्याण करती हैं। हमारा आचरण सही है तो स्वयं भगवती हमारा कल्याण करती हैं। बात चल रही थी 'संध्या काल' की। वैसे तो सूर्योदय से पूर्व के २४ मिनट, और सूर्यास्त के बाद के २४ मिनट 'संध्या काल' होते हैं। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे हर श्वास-प्रश्वास और प्रश्वास-श्वास के मध्य के वे संधिक्षण जब बिना किसी प्रयास के स्वतः ही सांस नहीं चल रही है, संध्याकाल हैं। उन क्षणों में हम अहंकार से मुक्त होते हैं, और हमारे भाव यानि मौन प्रार्थनाएँ निश्चित रूप से परमात्मा तक पहुँचती हैं। हमारे जीवन का उद्देश्य 'भगवत्-प्राप्ति है, अतः हमें उन क्षणों में भगवान में स्थित होना चाहिए।
वैसे तो हर समय हमें भगवान में स्थित होना चाहिए। जो सांसें हम ले रहे हैं या छोड़ रहे हैं, वे भगवान स्वयं ही ले और छोड़ रहे हैं। हमारी हर सांस परमात्मा की अभिव्यक्ति है। लेकिन जिन संधि क्षणों में हमारी सांसें स्वभाविक रूप से थमी हुई हैं, हम भगवान के साथ एक हैं। उन संधि क्षणों में की गई उपासना सर्वश्रेष्ठ संध्या है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०२२
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