Monday, 24 January 2022

उत्तरायण और दक्षिणायण अब कहीं बाहर नहीं, मेरे सूक्ष्म शरीर में ही हरेक साँस के साथ घटित हो रहे हैं ---

 उत्तरायण और दक्षिणायण अब कहीं बाहर नहीं, मेरे सूक्ष्म शरीर में ही हरेक साँस के साथ घटित हो रहे हैं। मेरे सूक्ष्म शरीर में सहस्त्रार-चक्र -- उत्तर दिशा है; मूलाधार -- दक्षिण दिशा है; भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है; और बिन्दु जहाँ शिखा रखते हैं -- वह पश्चिम दिशा है। आज्ञा-चक्र मेरा आध्यात्मिक हृदय है। सुषुम्ना की ब्रह्मनाड़ी मेरा परिक्रमा पथ है।

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आगे की बात एक गोपनीय परम रहस्य है जिसे मैं रहस्य ही रखना चाहता हूँ। परमशिव भी एक रहस्य हैं। अपना रहस्य वे स्वयं ही अनावृत करें तभी ठीक है।मेरे प्रारब्ध कर्मफल मुझे बापस इस देह में ले आते हैं। अभीप्सा तो परमशिव में उन के साथ ही हर समय स्थायी रूप से रहने की है, पर लौटना पड़ता है। यही मेरी पीड़ा है। आज नहीं तो कल, रहना तो उनके साथ ही है। इस मायाजाल से मुक्त करना या न करना, उन की समस्या है, मेरी नहीं। मैं तो अपने भाव-जगत में उनके साथ निश्चिंत होकर एक हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२२

1 comment:

  1. आज लोहिड़ी के त्योहार की शुभ कामनाएँ और अभिनंदन!! यह त्योहार एक महान राजपूत परम वीर दूलिया भाटी, जिसे पंजाब में दुल्ला भट्टी कहा जाता है, की पुण्य स्मृति में मनाया जाता है। उसने अपने जीवन काल में हजारों निर्दोष और भोलीभाली हिन्दू युवतियों को मुगलों के चंगुल से बचाया और उनका विवाह करवाया। उस परम वीर ने अकबर की नाक में दम कर रखा था। अकबर उसे कभी भी नहीं पकड़ पाया, और अंततः उसे धोखे से मरवा दिया। मैंने बचपन में दूलिया के खेल की नौटंकी कई बार देखी है।

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