आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा शत्रु व मित्र कौन है? सत्य-मुक्ति का उपाय क्या है?
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(इधर-उधर की झूठी और बनावटी बातें करना अधर्म है। जब सत्य का पता है तो सत्य ही कहना चाहिए। हरिःकृपा से जिस सत्य का मुझे बोध है, वही लिख रहा हूँ।)
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(१) आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हमारे से पृथक अन्य कोई है ही नहीं। हमारी उच्च प्रकृति जो हमें परमात्मा की ओर आकर्षित कर रही है, वह ही हमारी एकमात्र मित्र है। और जो निम्न प्रकृति हमें परमात्मा से दूर ले जा रही है, हमारी एकमात्र शत्रु है।
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(२) इस सृष्टि में कर्ता - हमारे तीनों गुण (सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण) हैं। उन्हीं से बंधे हुये हम कठपुतली की तरह नृत्य कर रहे हैं। परमात्मा की कृपा से त्रिगुणातीत (निस्त्रेगुण्य) होना ही मुक्ति का एकमात्र ज्ञात उपाय है। कोई कर्मकांड हमें मुक्त नहीं कर सकता।
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(३) जहाँ तक मैं समझता हूँ, त्रिगुणातीत होने के लिए अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति ही एकमात्र साधन है, बाकी परमात्मा की कृपा है। अनन्य का अर्थ है कि मेरे सिवाय कोई भी अन्य नहीं है। व्यभिचार का अर्थ है - किसी अन्य से भी प्रेम। अव्यभिचारिणी भक्ति का अर्थ है -- सिर्फ परमात्मा से ही प्रेम होना। कोई भी किसी भी मार्ग की साधना/उपासना हो, बिना भक्ति के वह सफल नहीं हो सकती। कितने भी प्राणायाम करो, कितना भी ध्यान करो, बिना भक्ति के वहाँ कोई सिद्धि नहीं हो सकती। बिना भक्ति के कोई भी ज्ञान या वैराग्य सिद्ध नहीं हो सकता। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कम से कम दो बार अव्यभिचारिणी भक्ति का उल्लेख किया है --
"मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी। विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥१३:११॥"
"मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते। स गुणान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते॥१४:२६॥"
ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाऽहममृतस्याव्ययस्य च। शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च॥१४:२७॥"
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हमारा एकमात्र शत्रु - हमारी स्वयं की अधोगामी निम्न प्रकृति है, अन्य कोई हमारा शत्रु नहीं है। इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) ने इसे 'शैतान' का नाम दिया है। यह शैतान कहीं बाहर नहीं, हमारी स्वयं की ही निम्न प्रकृति है, जिस पर विजय प्राप्त करने का उपदेश गीता के १४ वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण हमें देते हैं।
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हम ब्रह्म यानि परमात्मा के साथ सदा अभेद का चिंतन करें। इसी से हम अपने परम शत्रु - हमारी निम्न प्रकृति पर विजय प्राप्त कर पायेंगे। किसी श्रौत्रीय/ब्रहमनिष्ठ महात्मा से मार्गदर्शन लें। आप सब को शुभ कामनाएँ और नमन!!
ॐ तत्सत् ! ॐ ब्रह्मणे नमः ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
२२ जनवरी २०२२
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पुनश्च -- भागवत पुराण, भक्ति सूत्र, रामचरितमानस, विष्णु पुराण, पद्म पुराण -- आदि आगम ग्रन्थों में भक्ति की महिमा भरी पड़ी है। लेख का विस्तार न हो, इस भय से उनका उल्लेख यहाँ नहीं किया है।
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