वाणलिंग क्या होता है? ----
.
ओंकारेश्वर के पास में एक "धावड़ी कुंड" नामक स्थान था। वह किसी युग में वाणासुर नाम के एक परम शिवभक्त असुर राक्षस का यज्ञकुंड हुआ करता था। उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर के यह वरदान प्राप्त किया कि इस यज्ञकुंड से नर्मदा जी प्रवाहित हों, और यहाँ से निकले शिवलिंग सबसे अधिक पवित्र हों।
.
उसका यज्ञकुंड बहुत विशाल था, जिसमें ऊंची-नीची और घुमावदार बहुत सारी चट्टानें थीं। नर्मदा जी बहुत अधिक वेग से वहाँ से बहने लगीं, और वहाँ की ऊंची-नीची-घुमावदार चट्टानों से टूट टूट कर असंख्य शिवलिंग बनने लगे। वैसे तो नर्मदा का हर पत्थर शिवलिंग है जिनको किसी प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन धावड़ी कुंड से निकला शिवलिंग वाणलिंग कहलाता है और सबसे अधिक पवित्र माना जाता है।
.
नर्मदा पर बांध बनने से अब तो वह धावड़ी कुंड पानी में डूब गया है, अतः वाणलिंग मिलने बंद हो गए हैं। लेकिन जब पानी का स्तर थोड़ा नीचे होता है तब आसपास के गांवों के कुछ गोताखोर तैराक आपसे कुछ रुपये लेकर गोता लगाकर नीचे से एक विलक्षण शिवलिंग ला देंगे।
.
वाणलिंग की पहिचान ---
वाणलिंग को एक तराजू में चावलों से चार-पाँच बार तौला जाता है। जितनी बार भी तोलोगे उतनी ही बार चावलों का परिमाण अलग अलग होगा। यही उसकी पहिचान है। नर्मदा तट पर तपस्या करने वाले अनेक साधु अपनी जटा में वाणलिंग बांध कर रखते हैं। उसकी नित्य पूजा कर बापस अपनी जटा में बांध लेते हैं।
.
एक बार घर में वाणलिंग स्थापित करने के बाद उसकी नित्य पूजा होनी चाहिए। घर में रखे वाणलिंग की पूजा न करने से गृहस्थ को पाप लगता है और उसका अनिष्ट होता है।
१० जनवरी २०२२
No comments:
Post a Comment