इस जीवन में मेरी सदा से ही यह इच्छा रही थी कि मुझे ऐसे ही लोगों का साथ मिले जो जीवन में हर दृष्टिकोण से सफल भी हों, और जिनमें भगवान की भक्ति भी कूट कूट कर भरी हो। जहाँ ऐसे लोग रहते हों, उन्हीं स्थानों पर रहने की इच्छा भी थी। लेकिन मेरी ये मनोकामनायें कभी पूर्ण नहीं हुईं। इतने अच्छे मेरे प्रारब्ध कर्म नहीं थे।
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अब कोई कामना नहीं है। एकमात्र अभीप्सा रमात्माहै प को पाने की, यानि आत्म-साक्षात्कार की। अभी कुछ लिखने की इच्छा नहीं है। अब ऐसा वातावरण मुझ स्वयं को ही निर्माण करना पड़ेगा, जो मेरे अनुकूल हो। किसी से मिलने की, या कहीं जाने की अब कोई कामना नहीं है।
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सर्वप्रथम भगवान की प्राप्ति तो इसी जीवन में अभी इसी क्षण करनी है। भगवान भी अब स्वयं को रोक नहीं सकेंगे। मैं जहाँ भी और जैसे भी हूँ, भगवान को वहाँ आना ही पड़ेगा। मैं न तो कोई नमन कर रहा हूँ और न कोई प्रार्थना कर रहा हूँ। ईश्वर को पाना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। ईश्वर अब और छिप नहीं सकते, उन्हें प्रकट होना ही पड़ेगा। संचित कर्मों की और कर्मफलों की कोई परवाह नहीं है, वे कटते रहेंगे। लेकिन भगवान मुझे इसी क्षण चाहियें। और प्रतीक्षा नहीं कर सकता।
कृपा शंकर
१९ जनवरी २०२२
"कामना" और "अभीप्सा" -- दोनों में बहुत अधिक अंतर है। कामना जिसे हम आकांक्षा भी कहते हैं, बंधनों में डालती है। अभीप्सा -- बंधनों से मुक्त करती है। कामना हमें भटकाती है, अभीप्सा हमारा मार्ग प्रशस्त करती है।
ReplyDeleteअभीप्सा --- आत्मा की प्यास और तड़प है, परमात्मा के लिए।
आकांक्षा --- मन की वासना है, अहंकार की तृप्ति के लिए।