Monday, 24 January 2022

परमात्मा की खोज अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती ---

 ॐ श्री गुरुभ्यो नमः !! जीवन में सब कुछ प्रतीक्षा कर सकता है, लेकिन परमात्मा की खोज अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती ---

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हमारा प्रथम, अंतिम, और एकमात्र लक्ष्य है - "भगवत्-प्राप्ति", जिसके लिए पूरी तरह मुझे आवश्यक है --
(१) गीता में बताई हुई "ब्राह्मी-स्थिति" या "कूटस्थ-चैतन्य" या "क्रिया की परावस्था" में रहने का नित्य निरंतर अभ्यास।
(२) अपनी गुरु-परंपरानुसार नित्य नियमित - साधना/उपासना, जिसकी अवधि दिन में कम से कम कुल मिलाकर तीन घंटे की तो होनी ही चाहिए। उससे कम में काम नहीं चलेगा। अधिकतम की तो कोई सीमा नहीं है। फिर भी जो सेवानिवृत हैं, उन्हें अपने साधनाकाल की अवधि को बढ़ाकर दिन में कम से कम आठ घंटे तक तो ले ही आना चाहिए। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। मुझे छोड़कर मेरे अनेक मित्र हैं जो नित्य नियमित आठ-नौ घंटे भगवान का ध्यान करते हैं, और चैतन्य की एक अति उच्च अवस्था में रहते हैं। मैं ही सबसे अधिक पिछड़ा हुआ हूँ। मुझे भी अब "प्रमाद" और "दीर्घसूत्रता" को त्याग कर, उनकी बराबरी करनी ही पड़ेगी। परमात्मा से भी ऐसी ही प्रेरणा मिल रही है। अतः सत्यनिष्ठा से प्रयास करेंगे। कर्ता तो स्वयं परमात्मा है, जिनका मैं निमित्त मात्र तो हूँ ही।
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जनवरी २०२२

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