आध्यात्मिक रूप से हमारा सबसे बड़ा शत्रु -- हमारी स्वयं की अधोगामी निम्न प्रकृति है। यह अधोगामी निम्न प्रकृति ही हमारी सभी बुराइयों की जड़ है, जो हमारे अहंकार को प्रबल कर हमें परमात्मा से दूर करती है। यह गीता के १४वें अध्याय "गुण-त्रय-विभाग योग" का सार है। इसका स्वाध्याय बार-बार तब तक करना चाहिए जब तक यह पूरी तरह समझ में नहीं आ जाये।
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मुझे यह लिखते हुए बड़ा अफसोस भी होता है कि मेरी दृष्टि में ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका अगला जन्म मनुष्य योनि में नहीं, बल्कि पशु आदि नीच योनियों में होगा। लेकिन मैं उन्हें सचेत नहीं कर सकता, क्योंकि इस विषय पर कुछ बोलते ही वे मेरे शत्रु बन जाएँगे, जिनकी संख्या नहीं बढ़ाना चाहता।
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ॐ तत्सत् ! ॐ ब्रह्मणे नमः ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जनवरी २०२२
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