आध्यात्म में कुछ पाने या प्राप्ति की कामना एक मरीचिका है। जो कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है, वह तो हम "स्वयं" हैं। आध्यात्मिक मार्ग पर मार्ग-दर्शन सब को प्राप्त होता है। कोई यदि यह कहे कि उसे मार्ग-दर्शन नहीं मिला है तो वह झूठ बोल रहा है। भगवान की कृपा सब पर समान रूप से है।
.
भगवान गीता में कहते हैं --
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
अर्थात् - हे पार्थ ! जो अनन्यचित्त वाला पुरुष मेरा स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ॥
(अनन्यचित्त अर्थात् नित्य-समाधिस्थ जिसका चित्त निरन्तर परमात्मा का स्मरण करता है। सततम् का अर्थ है निरंतरता। नित्यशः का अर्थ है नित्य जीवन पर्यंत। ऐसे व्यक्ति को भगवान की प्राप्ति अनायास ही हो जाती है)
.
यह विषय बहुत अधिक गहन और बहुत अधिक लंबा है जिसका कोई अंत नहीं है। अतः इसका समापन यहीं कर रहा हूँ। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०२२
No comments:
Post a Comment