सनातन धर्मावलम्बियों को चाहिए कि वे ---
(१) भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक -- हर दृष्टी से स्वयं बलशाली बनें, और आत्मरक्षा करने में समर्थ हों। अपने स्वधर्म को समझें, और उसका निज जीवन में सपरिवार पालन करें। अपनी संतानों को अच्छे से अच्छे संस्कार और शिक्षा दें। उन्हें भी हर तरह से उच्च-चरित्रवान, सशक्त और आत्मविश्वासी बनायें। उनमें इतना साहस हो कि वे निर्भय होकर अपनी बात कह सकें और अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें। अपनी संतानों को सत्य-सनातन-धर्म की शिक्षा दिलवायें, और उन्हें इतना सक्षम व समर्थवान बनायें कि वे सत्य-सनातन-धर्म की शिक्षा दूसरों को भी दे सकें। समय पर उनका उपनयन संस्कार करवाएँ, उनमें भगवान की भक्ति जागृत कर, उन्हें आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि सिखलाएँ।
.
(२) सरकारों पर दबाव डालकर, संविधान से हिन्दू विरोधी प्रावधानों को हटवायें। हिन्दू मंदिरों को सरकारी लूट से बचायें, और यह सुनिश्चित करें कि वे धर्म-शिक्षा और धर्म-प्रसार के केंद्र बनें। सरकारों पर दबाव डालकर "समान नागरिक संहिता", "समान विधान" और "समान कानून" लागू करवायें। हम धर्म-निरपेक्ष नहीं, धर्म-सापेक्ष, धर्मावलम्बी और सत्यनिष्ठ बनें। गुरुकुल शिक्षा-पद्धति पुनर्जीवित की जाये, जहाँ उच्चतम आधुनिक वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था हो।
.
(३) अनुसंधान और शोध द्वारा सच्चा इतिहास लिखा जाए। उसमें कोई झूठ-कपट न हो। उन सब कारणों को दूर किया जाये जिनके कारण हम विदेशी आक्रमणकारियों से पराजित हुए। हमारा गौरवशाली इतिहास सामने लाया जाये, हमारे धर्म-ग्रन्थों की और हमारी ऐतिहासिक विरासत की रक्षा हो।
.
(४) हम आत्म-सम्मान से जीयें। एक-दूसरे की सहायता करें, और सुनिश्चित करें कि किसी भी तरह का अभाव हिन्दू समाज में न हो, व कोई भी हिन्दू अभावग्रस्त न हो। गर्व से कहो हम हिन्दू हैं। हमारी हर कमी दूर होगी। हम विश्वगुरु और पूरे विश्व के लिए एक आदर्श होंगे।
.
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१९ जनवरी २०२२
सनातन धर्मावलंबियों में कोई दुर्बलता नहीं है। वे सोये हुए भी नहीं हैं। पूर्व अंग्रेज़ शासकों और उनके बाद उनके मानसपुत्र शासकों द्वारा रचित षड़यंत्र के कारण सनातन धर्मावलंबियों में धर्मशिक्षा का अभाव है। यही उनकी सब कमियों का कारण है। एक बार धर्मशिक्षा आरंभ होते ही उन में हीनता का कृत्रिम बोध समाप्त हो जायेगा और स्वाभिमान जागृत हो जाएगा। फिर जो होगा, उसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। अगले पचास-साठ वर्षों में सनातन धर्मानुयायी विश्व में सर्वाधिक होंगे।
ReplyDeleteॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!