शास्त्रों के अनुसार प्रमाद ही मृत्यु है, पर वास्तविक मृत्यु तो परमात्मा से विमुखता हैे। परमात्मा का ध्यान भ्रूमध्य में ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में अजपा-जप (हंस-योग/ हंसवती-ऋक) के साथ कीजिये। इसकी विधि किसी अच्छे संत-महात्मा से सीख लें।
.
साथ साथ यह भी आदेश और अनुमति भी किसी अच्छे संत-महात्मा से ले लें कि आपको कम से कम जप इतनी संख्या में अपने स्वभाव के अनुकूल किसी मंत्र का करना ही है। उस संख्या को धीरे धीरे क्रमशः बढ़वाते रहें। मंत्र की दीक्षा भी किसी अच्छे संत-महात्मा से लें।
.
देश में अच्छे-अच्छे संत-महात्माओं की कोई कमी नहीं है। जैसी आपकी भावना होगी वैसे ही संत आपको मिलेंगे। भगवान को आप ठगना चाहते हैं तो ठग गुरु ही मिलेंगे। सत्यनिष्ठापूर्वक भगवान से प्रेम करते हैं, तो आपको अच्छे संत मिलेंगे।
मंगलमय शुभ कामनाएँ !!
१७ जनवरी २०२२
No comments:
Post a Comment