Monday 24 January 2022

मेरे आज्ञाकारी शिष्य, मेरे अनुयायी, मेरे मित्र, और मेरी संतान कौन हैं? ---

 मेरे आज्ञाकारी शिष्य, मेरे अनुयायी, मेरे मित्र, और मेरी संतान कौन हैं? ---

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मेरे विचार ही अब मेरे आज्ञाकारी शिष्य, अनुयायी और मेरी संतान बन गए हैं। उन्हें मैं सजाऊँगा, संवारूंगा, और सर्वश्रेष्ठ बनाऊँगा। मुझे उन पर गर्व है कि वे परमशिव से प्रेम करने लगे हैं। उन्होने मेरा सदा साथ दिया है। उनके भरोसे ही मैं अब निश्चिंत होकर जीवित रहते हुए ही इस भौतिक देह की चेतना से भी बहुत ऊपर उठ सकता हूँ। रात्री में जब तक भगवान की गहनतन अनुभूति न हो तब तक मुझे सोना नहीं चाहिए। यह शरीर याद दिलाएगा कि मैं थक गया हूँ, और विश्राम की आवश्यकता है। लेकिन मुझे उसकी उपेक्षा कर देनी चाहिए, क्योंकि मैं यह शरीर नहीं हूँ। अधिक से अधिक क्या होगा? कुछ भी नहीं, क्योंकि इस शरीर का साथ तो तब तक नहीं छूट सकता जब तक इसके साथ रहने का प्रारब्ध है। लेकिन भगवान का नियमित ध्यान नहीं करने से भगवान को पाने की अभीप्सा ही समाप्त हो सकती है। नित्य नियमित परमशिव में स्थित रहने की उपासना अति अनिवार्य है। इस संसार में सबसे अधिक सुंदर कौन है? जिस के हृदय में भगवान के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है, वही इस संसार का सबसे अधिक सुन्दर व्यक्ति है, चाहे उस की भौतिक शक्ल-सूरत कैसी भी हो। जिसके हृदय में भगवान से प्रेम नहीं हैं है, वह सबसे अधिक वीभत्स और भयावह है।
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"तेरे भावे जो करे भलो-बुरो संसार। नारायण तू बैठ के अपनो भुवन बुहार॥"
मेरे वश में कोई बात नहीं है तो मैं अपनी कमी को ढकने के लिए कभी सृष्टिकर्ता को दोष न दूँ। जो करेगा सो भरेगा। भगवान की चेतना में किया गया हरेक कार्य शुभ ही है। मेरा कार्य भगवान का प्रकाश फैलाना है, न कि अंधकार। जितना अधिक मैं भगवान का ध्यान करता हूँ, उतना ही अधिक मैं स्वयं का ही नहीं, पूरी समष्टि का उपकार करता हूँ। यही एकमात्र और सबसे बड़ी सेवा है जो मैं कर सकता हूँ। किसी भी परिस्थिति में निज विवेक से सर्वश्रेष्ठ कर्म करना मेरा अधिकार व कर्त्तव्य है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२२

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