सत्य को जानने की शाश्वत जिज्ञासा ही धर्म है ---
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परमात्मा ही एकमात्र सत्य हैं। अपने विवेक से निर्णय कीजिये कि सत्य और असत्य क्या है। पहले देवों और असुरों में आपस में युद्ध होते थे। कभी देवता प्रबल हो जाते थे, कभी असुर। उसी तरह यह सृष्टि--प्रकाश और अंधकार का खेल है। वैसे ही धर्म और अधर्म हैं।
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जो हमें परमात्मा का साक्षात्कार करवा दे, वही धर्म है। जो हमें परमात्मा से दूर ले जाये वह अधर्म है। बाकी सब बुद्धि-विलास है। जो अधर्म हैं, वे एक आसुरी शक्ति के द्वारा चलाये जा रहे हैं, परमात्मा के द्वारा नहीं। एक असुर है जो असत्य का संचालन कर रहा है। उस असुर का होना भी सृष्टि संचालन के लिए आवश्यक है, लेकिन उसकी प्रबलता न्यूनतम हो। इस प्रश्न पर विचार कीजिये कि मैं कौन हूँ? उस वास्तविक "मैं" की खोज ही परमात्मा की खोज है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०९ दिसंबर २०२४
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