किस चीज ने मुझे इस संसार से बांध रखा है? मैं कैसे व क्यों जीवित हूँ? ---
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मेरे और इस संसार के मध्य की कड़ी -- ये सांसें हैं। जिस क्षण ये सांसें चलनी बंद हो जायेंगी, उसी क्षण इस संसार से मेरे सारे संबंध टूट जायेंगे।
ये सांसें चल रही हैं, इसके पीछे सुषुम्ना में विचरण कर रही प्राण शक्ति भगवती कुंडलिनी हैं। वे ही मेरा प्राण हैं। परमशिव से एकाकार होने तक वे विचरण करती रहेंगी। जिस जन्म में या जब भी वे परमशिव से मिल कर एकाकार हो जायेंगी, उसी क्षण यह जीवात्मा जीवनमुक्त हो जायेगी।
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जन्म-मरण और जीवन -- ये सब मेरे वश में नहीं हैं। अनेक जन्मों के संचित कर्मफलों के प्रारब्ध को भोगने के लिए हमें यह जीवन मिलता है। लेकिन अब सारा परिदृश्य और धारणा बदल गयी है। जिन्होंने इस समस्त सृष्टि की रचना की है वे जगन्माता ही यह जीवन जी रही हैं। मेरे और इस संसार के मध्य की कड़ी --ये सांसें, जगन्माता का मुझे सबसे बड़ा उपहार है। ये साँसें प्राणशक्ति के स्पंदन और संचलन की प्रतिक्रिया मात्र हैं। जिस क्षण जगन्माता की प्राणशक्ति का यह स्पंदन/संचलन रुक जाएगा, उसी क्षण ये साँसें भी रुक जायेंगी, और यह देह निष्प्राण हो जायेगी।
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परमात्मा को उपलब्ध होने का माध्यम/साधन भी ये साँसें ही हैं। अतः इन्हें व्यर्थ न जाने दें। कई रहस्य हैं जो जगन्माता के अनुग्रह से ही अनावृत होते हैं। वे रहस्य -- रहस्य ही रहें तो ठीक है। यह भी एक रहस्य है।
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हमारा स्वास्थ्य (स्व+स्थ) हमारे विचारों पर निर्भर है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। हम आलोकमय होंगे तो पूरी सृष्टि आलोकित होगी। हम सब स्वस्थ, प्रसन्न और परमात्मा की चेतना में रहें। सभी में साक्षात नारायण को नमन। ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० दिसंबर २०२४
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