Tuesday, 17 December 2024

भगवान को हम दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उनका ही दिया हुआ है .....

 भगवान को हम दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उनका ही दिया हुआ है .....

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भगवान को हम दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उनका ही दिया हुआ है| हाँ, पर एक चीज ऐसी भी है जो सिर्फ हमारे ही पास है और भगवान भी उसे हमसे बापस पाना चाहते हैं| उस के अतिरिक्त अन्य कुछ भी हमारे पास अपना कहने को नहीं है| वह सिर्फ हम ही उन्हें दे सकते हैं, कोई अन्य नहीं| और वह है ..... हमारा अहैतुकी परम प्रेम||
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इस समस्त सृष्टि का उद्भव परमात्मा के संकल्प से हुआ है और वे ही है जो सब रूपों में स्वयं को व्यक्त कर रहे है| कर्ता भी वे है और भोक्ता भी वे ही है|
वे स्वयं ही अपनी सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार के कर्ता है| जीवों की रचना भी उन्हीं के संकल्प से हुई है| सारे कर्मों के कर्ता भी वे ही है और भोक्ता भी वे ही है| सृष्टि का उद्देष्य ही यह है कि हम अपनी सर्वश्रेष्ठ सम्भावना को व्यक्त कर पुनश्चः उन्हीं की चेतना में जा मिलें| यह उन्हीं की माया है जो अहंकार का सृजन कर हमें उन से पृथक कर रही है| इस संसार के सारे दु:ख और कष्ट इसी लिए हैं कि हम परमात्मा से अहंकारवश पृथक हैं, और इनसे मुक्ति भी परमात्मा में पूर्ण समर्पण कर के ही मिल सकती है| वे भी सोचते हैं कि कभी न कभी तो कोई उनकी संतान उनको प्रेम अवश्य करेगी| वे भी हमारे प्रेम के बिना दु:खी हैं चाहे वे स्वयं सच्चिदानंद हों|
भगवान हम से प्रसन्न तभी होंगे जब हम अपना पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम उन्हें समर्पित कर दें| अन्य कोई मार्ग नहीं है उन को प्रसन्न करने का|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
१८ दिसंबर २०१६

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