भगवान को हम दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उनका ही दिया हुआ है .....
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भगवान को हम दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उनका ही दिया हुआ है| हाँ, पर एक चीज ऐसी भी है जो सिर्फ हमारे ही पास है और भगवान भी उसे हमसे बापस पाना चाहते हैं| उस के अतिरिक्त अन्य कुछ भी हमारे पास अपना कहने को नहीं है| वह सिर्फ हम ही उन्हें दे सकते हैं, कोई अन्य नहीं| और वह है ..... हमारा अहैतुकी परम प्रेम||
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इस समस्त सृष्टि का उद्भव परमात्मा के संकल्प से हुआ है और वे ही है जो सब रूपों में स्वयं को व्यक्त कर रहे है| कर्ता भी वे है और भोक्ता भी वे ही है|
वे स्वयं ही अपनी सृष्टि के उद्भव, स्थिति और संहार के कर्ता है| जीवों की रचना भी उन्हीं के संकल्प से हुई है| सारे कर्मों के कर्ता भी वे ही है और भोक्ता भी वे ही है| सृष्टि का उद्देष्य ही यह है कि हम अपनी सर्वश्रेष्ठ सम्भावना को व्यक्त कर पुनश्चः उन्हीं की चेतना में जा मिलें| यह उन्हीं की माया है जो अहंकार का सृजन कर हमें उन से पृथक कर रही है| इस संसार के सारे दु:ख और कष्ट इसी लिए हैं कि हम परमात्मा से अहंकारवश पृथक हैं, और इनसे मुक्ति भी परमात्मा में पूर्ण समर्पण कर के ही मिल सकती है| वे भी सोचते हैं कि कभी न कभी तो कोई उनकी संतान उनको प्रेम अवश्य करेगी| वे भी हमारे प्रेम के बिना दु:खी हैं चाहे वे स्वयं सच्चिदानंद हों|
भगवान हम से प्रसन्न तभी होंगे जब हम अपना पूर्ण अहैतुकी परम प्रेम उन्हें समर्पित कर दें| अन्य कोई मार्ग नहीं है उन को प्रसन्न करने का|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||
१८ दिसंबर २०१६
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