राष्ट्रहित में ---
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जब तक इस शरीर को धारण कर रखा है तब तक मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष का एक विचारशील नागरिक हूँ| भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में होने वाली हर घटना का मुझ पर ही नहीं सब पर प्रभाव पड़ता है| आध्यात्म के नाम पर भौतिक जगत से मैं तटस्थ नहीं रह सकता|
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पर यदि भारत, भारत ही नहीं रहेगा तब धर्म भी नहीं रहेगा, श्रुतियाँ-स्मृतियाँ भी नहीं रहेंगी, यानि वेद आदि ग्रन्थ भी नष्ट हो जायेंगे, साधू-संत भी नहीं रहेंगे, सदाचार भी नहीं रहेगा और देश की अस्मिता ही नष्ट हो जायेगी| इसी तरह यदि धर्म ही नहीं रहा तो भारत भी नहीं रहेगा| दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं| अतः राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि दायित्व है| धर्म के बिना राष्ट्र नहीं है, और राष्ट्र के बिना धर्म नहीं है| सनातन धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन धर्म है|
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सिन्धु नदी के तट पर ऋषियों को वेदों के दर्शन हुए थे| आज सिन्धु नदी के तट पर कहीं पर भी वेदों की ध्वनि नहीं सुनाई देती| भारतवर्ष की अस्मिता सनातन धर्म है, वही इसकी रक्षा कर सकता है| भारतवर्ष की रक्षा न तो मार्क्सवाद कर सकता है, न समाजवाद, न धर्मनिर्पेक्षतावाद न सर्वधर्मसमभाववाद और न अल्पसंख्यकवाद| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारतवर्ष भी नष्ट हो जाएगा| भारत के बिना सनातन धर्म भी नहीं है, और सनातन धर्म के बिना भारत भी नहीं है|
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विश्व का भविष्य भारतवर्ष से है, और भारत का भविष्य सनातन धर्म से है| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो यह संसार भी नष्ट हो जायेगा|
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भारत की वर्तमान शासन व्यवस्था लोकतंत्रीय संसदीय शासन की है| पर आज लोकतंत्र का स्थान भीड़तंत्र ने ले लिया है| संसद को चलाने में प्रति मिनट २५ लाख रूपये खर्च होते हैं| सांसदों को अत्यधिक वेतन, आर्थिक लाभ, निःशुल्क भव्य निवास, निःशुल्क वाहन, निःशुल्क यात्रा, निःशुल्क फोन, जीवन भर की पेंशन और अन्य दुनिया भर की सुविधाएँ दी जाती हैं| ये सब करदाताओं के पैसों से है | यदि इनका दुरुपयोग होता है तो ये सब बंद होनी चाहिएँ|
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सांसद को उतने ही दिन का वेतन मिलना चाहिए जितने दिन वह संसद में आकर शांति से अपना काम करता है| शोरगुल व हो-हल्ला करने वालों को बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए और उस दिन के लिए उसे कुछ भी पैसा नहीं मिलना चाहिए| अपने जीवन यापन और पेंशन की व्यवस्था भी वे खुद ही करें| हम सोचते हैं कि ये लोग देश का भला करेंगे पर पिछले कुछ दिनों से जो कुछ भी हो रहा है उससे पूरा देश निराश हुआ है|
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इसका विरोध कीजिये जो हर प्रबुद्ध नागरिक का दायित्व है| हमें क्या आवश्यकता है ऐसी व्यवस्था व ऐसे लोगों की जो देशहित में कार्य करने की बजाय अपने दल के हित में और अपने व्यक्तिगत हित में करते हैं? ज़रा जरा सी असंगत बातों पर संसद को ठप्प कर देना क्या उनको शोभा देता है? यह अधर्म नहीं तो और क्या है?
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भारत माता की जय |
जयतु वैदिकी संस्कृतिः जयतु भारतम् | ---जय श्रीराम--- ॐ ॐ ॐ ||
१८ दिसंबर २०१५
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