भक्ति का दिखावा, भक्ति का अहंकार, और साधना का समर्पण ......
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किसी भी साधक के लिए सबसे बड़ी बाधा है .... भक्ति का दिखावा और भक्ति का अहंकार |
कई लोग सिर्फ दिखावे के लिए या अपने आप को प्रतिष्ठित कराने के लिए ही भक्ति का दिखावा करते हैं | वे लोग अन्य किसी को नहीं बल्कि अपने आप को ही ठग रहे हैं | जहाँ तक हो सके अपनी साधना को गोपनीय रखें |
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भक्त या साधक होने का अहंकार सबसे बड़ा अहंकार है | इसके दुष्परिणाम भी सबसे अधिक हैं |
इससे बचने का एक ही उपाय है ..... अपनी भक्ति और साधना का फल तुरंत भगवान को अर्पित कर दो, अपने पास बचाकार कुछ भी ना रखो, सब कुछ भगवान को अर्पित कर दो | अपने आप को भी परमात्मा को अर्पित कर दो | कर्ता भाव से मुक्त हो जाओ | हम भगवान के एक उपकरण या खिलौने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं हैं |
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आप कोई साधना नहीं करते हैं, आपके गुरु महाराज या स्वयं भगवान ही आपके माध्यम से साधना कर रहे हैं ..... यह भाव रखने पर कहीं कोई त्रुटी भी होगी तो उसका शोधन गुरु महाराज या भगवान स्वयं कर देंगे | कर्ता भगवान को बनाइये, स्वयं को नहीं |
प्रभु के प्रेम के अतिरिक्त अन्य कोई भी कामना न रखें | उनके प्रेम पर तो आपका जन्मसिद्ध अधिकार है | अन्य कुछ भी आपका नहीं है |
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ॐ गुरु ॐ | गुरु ॐ | गुरु ॐ ||
१७ दिसंबर २०१५
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