हमारी साँसें प्राणों से नियंत्रित होती हैं या प्राण साँसों से नियंत्रित होते हैं इसका मुझे नहीं पता, लेकिन दोनों एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। साँसों पर ध्यान करने से ही प्राण-तत्व की अनुभूति होती है, और प्राण-तत्व ही हमें परमात्मा की अनुभूति कराता है।
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मन में बुरे विचार आते हैं, उस समय हमारी साँसे छोटी हो जाती है, और तेज चलने लगती हैं, यानि उनकी आवृति (frequency) बढ़ जाती है। जब हमारी साँसों की आवृति कम होती है, साँसें लंबी व धीमी गति से चलती हैं तभी मन में सदविचार आते हैं, और भक्ति यानि परमात्मा से परमप्रेम की भावना जागृत होती है।
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इस विषय पर पर्याप्त साहित्य भी उपलब्ध है और साधना पद्धतियाँ भी हैं। इस विषय पर उन्हीं लोगों से संवाद किया जा सकता है जिन्हें परमात्मा से परमप्रेम है। अन्य लोगों से चर्चा करना व्यर्थ है।
आत्मीय रूप से मेरा संपर्क और संबंध उन्हीं से है, जिनके हृदय में भगवान के प्रति भक्ति है। अन्यों से संबंध मेरा प्रारब्ध, विगत में यानि पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों का फल है। अब तो हर साँस के साथ कर्म कट रहे हैं। जिनका कुछ भी अहित मनसा-वाचा-कर्मणा मेरे कारण हुआ है, वे मुझे क्षमा करें।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०२३
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