अनुसरण किसका करें ? ....
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महाभारत में एक यक्षप्रश्न के उत्तर में महाराज युधिष्ठिर कहते है ......
"तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः ||"
अर्थात् .... तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं जिनका वचन प्रमाण माना जा सके| धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
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अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे कौन से महापुरुष हैं जिनका अनुसरण किया जाए|
हर व्यक्ति अपनी अपनी चेतना के अनुसार पृथक पृथक उत्तर देगा|
मेरी जहाँ तक समझ है, तीन ही ऐसे महापुरुष हैं जिनका मैं अनुसरण कर सकता हूँ, यानि जिनको मैं पूर्णतः समर्पित हो सकता हूँ|
वे हैं ..... भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण और श्री हनुमान जी |
ये ही मेरे परम आदर्श हैं, और इनके जीवन का प्रत्येक अंश मेरे लिए परम आदर्श है| इनका स्थान अन्य कोई नहीं ले सकता|
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महाभारत में आता है कि सरोवर में जल लेने गये महाराज युधिष्ठिर को उस सरोवर में रहनेवाले यक्ष ने चार प्रश्न किये, और कहा कि उन चार प्रश्नों के उत्तर देने पर ही वह सरोवर का जल ले सकते हैं, अन्यथा नहीं| यक्ष के प्रश्नों के उत्तर न देने पर अन्य चारों पांडव मूर्छित हो चुके थे|
यक्ष ने पूछा ......
का वार्ता, किमाश्चर्यं, कः पन्था, कश्च मोदते ?
इति मे चतुरः प्रश्नान् पूरयित्वा जलं पिब ....
अर्थात् ...
(1) कौतुक करने जैसी क्या बात है ?
(2) आश्चर्य क्या है ?
(3) कौन सा मार्ग है ?
(4) कौन आनंदित रहता है ?
मेरे इन चार प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् ही पानी पी सकते हो|
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महाराज युधिष्ठिर ने उत्तर दिया .....
(1) मासर्तुवर्षा परिवर्तनेन सूर्याग्निना रात्रि दिवेन्धनेन |
अस्मिन् महामोहमये कराले भूतानि कालः पचतीति वार्ता ||
अर्थात् ....
इस कराल मोह में, महिने, वर्ष इत्यादि के परिवर्तन से, सूर्यरुप अग्नि के इंधन से काल रात-दिन प्राणियों को पकाता है; यह कौतुक करने की बात है |
(2) अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् |
शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ||
अर्थात् ....
प्रतिदिन कितने हि प्राणी यम मंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), यह देखने के पश्चात भी शेष मनुष्य सदा जीवित रहना चाहते हैं| यह सबसे बड़ा आश्चर्य है|
(3) "तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः |"
अर्थात् ....
तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
(4) दिवसस्याष्टमे भागे शाकं पचति गेहिनी |
अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ||
अर्थात् .......
हे जलचर ! दिन के आठवें भाग में (सुबह-शाम रसोई के वक्त) जिसकी गृहिणी खाना पकाती हो, जिसके सर पे कोई ऋण न हो, जिसे (अति) प्रवास न करना पड़ता हो, वह मनुष्य (घर) सदा आनंदित होता है ।
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२८ मई २०१६
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महाभारत में एक यक्षप्रश्न के उत्तर में महाराज युधिष्ठिर कहते है ......
"तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम् |
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः ||"
अर्थात् .... तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं जिनका वचन प्रमाण माना जा सके| धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
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अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे कौन से महापुरुष हैं जिनका अनुसरण किया जाए|
हर व्यक्ति अपनी अपनी चेतना के अनुसार पृथक पृथक उत्तर देगा|
मेरी जहाँ तक समझ है, तीन ही ऐसे महापुरुष हैं जिनका मैं अनुसरण कर सकता हूँ, यानि जिनको मैं पूर्णतः समर्पित हो सकता हूँ|
वे हैं ..... भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण और श्री हनुमान जी |
ये ही मेरे परम आदर्श हैं, और इनके जीवन का प्रत्येक अंश मेरे लिए परम आदर्श है| इनका स्थान अन्य कोई नहीं ले सकता|
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महाभारत में आता है कि सरोवर में जल लेने गये महाराज युधिष्ठिर को उस सरोवर में रहनेवाले यक्ष ने चार प्रश्न किये, और कहा कि उन चार प्रश्नों के उत्तर देने पर ही वह सरोवर का जल ले सकते हैं, अन्यथा नहीं| यक्ष के प्रश्नों के उत्तर न देने पर अन्य चारों पांडव मूर्छित हो चुके थे|
यक्ष ने पूछा ......
का वार्ता, किमाश्चर्यं, कः पन्था, कश्च मोदते ?
इति मे चतुरः प्रश्नान् पूरयित्वा जलं पिब ....
अर्थात् ...
(1) कौतुक करने जैसी क्या बात है ?
(2) आश्चर्य क्या है ?
(3) कौन सा मार्ग है ?
(4) कौन आनंदित रहता है ?
मेरे इन चार प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् ही पानी पी सकते हो|
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महाराज युधिष्ठिर ने उत्तर दिया .....
(1) मासर्तुवर्षा परिवर्तनेन सूर्याग्निना रात्रि दिवेन्धनेन |
अस्मिन् महामोहमये कराले भूतानि कालः पचतीति वार्ता ||
अर्थात् ....
इस कराल मोह में, महिने, वर्ष इत्यादि के परिवर्तन से, सूर्यरुप अग्नि के इंधन से काल रात-दिन प्राणियों को पकाता है; यह कौतुक करने की बात है |
(2) अहन्यहनि भूतानि गच्छन्ति यममन्दिरम् |
शेषा जीवितुमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ||
अर्थात् ....
प्रतिदिन कितने हि प्राणी यम मंदिर जाते हैं (मर जाते हैं), यह देखने के पश्चात भी शेष मनुष्य सदा जीवित रहना चाहते हैं| यह सबसे बड़ा आश्चर्य है|
(3) "तर्को प्रतिष्ठः श्रुतया विभिन्ना नैको मुनिर्यस्य मतं प्रमाणम्
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः स पन्थाः |"
अर्थात् ....
तर्कों से कुछ भी प्रतिष्ठित किया जा सकता है, श्रुति के अलग अलग अर्थ कहे जा सकते हैं, कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; धर्म का तत्त्व तो मानो निविड़ गुफाओं में छिपा है (गूढ है), इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग जाने योग्य है |
(4) दिवसस्याष्टमे भागे शाकं पचति गेहिनी |
अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते ||
अर्थात् .......
हे जलचर ! दिन के आठवें भाग में (सुबह-शाम रसोई के वक्त) जिसकी गृहिणी खाना पकाती हो, जिसके सर पे कोई ऋण न हो, जिसे (अति) प्रवास न करना पड़ता हो, वह मनुष्य (घर) सदा आनंदित होता है ।
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ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२८ मई २०१६
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