जन्म और मृत्यु .....
प्राणी का जन्म मृत्यु के लिए ही होता है, .... यह सनातन सत्य है| जन्म और मृत्यु के मध्य का समय ही जीवन है| विचारणीय विषय यह है कि इसकी सार्थकता यानि सर्वश्रेष्ठ उपयोग क्या हो सकता हैै? प्रत्येक प्राणी जो इस संसार में जन्म लेता है वह क्या बनेगा इसका उसे कोई ज्ञान नहीं होता| पर इतना तो उसे बोध होता ही है कि वह मृत्यु को एक न एक दिन अवश्य प्राप्त होगा| यही परम सत्य है|
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"जीवन और मृत्यु" क्या हमारे वश में है? पता नहीं कितनी बार हम जन्में और मरे हैं| कब तक यह चक्र चलता रहेगा? कुछ भी नहीं कह सकते| शास्त्र कहते हैं कि कर्म फल भोगने के लिए हम जन्म लेते हैं| पर एक कर्म फल भोगने के चक्कर में हज़ारों कर्मफल संचित कर लेते हैं| इस मायावी चक्र से कैसे मुक्ति पाएँ?
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श्रीमद्भागवत की कथा में राजा परीक्षित को जब यह ज्ञान हुआ कि आत्मा अजर-अमर है, तो उसका मृत्यु का भय समाप्त हो गया| मुक्ति की परिकल्पना ही एक असत्य है| आत्मा तो नित्य मुक्त है| अहंकार और मोह ही बंधन के कारण हैं| इनसे मुक्त होना ही मुक्ति है| अहं का पूर्ण समर्पण ही मुक्ति है| मन में कोई शुभ विचार आए तो उसे उसी दिन उसी समय पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए| कल पर टालना ही मृत्यु है|
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जो हमारे वश में ही नहीं है, उस पर हम हम क्या कर सकते है? पर जो हमारे वश में है वह तो इसी क्षण कर सकते हैं| सबसे बड़ी सेवा और सबसे महान कार्य जो हम जीवन में कर सकते हैं वह है ..... "परमात्मा को पूर्ण समर्पण और निज जीवन में उसे व्यक्त करने का प्रयास" ..... जो हमें निरंतर करना चाहिए|
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हे जगन्माता, तुम्हीं परमब्रह्म हो, तुम्ही परमशिव हो, तुम्ही विष्णु हो, तुम्हीं नारायण हो| मैं तुम्हें नहीं जानता, पर तुम मेरे ह्रदय में प्रेमरूप में स्थित हो, तुम मेरे ह्रदय का परम प्रेम हो| प्रेम रूप में तुम सदा मेरे साथ हो|
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मैं मेरे सारे बुरे-अच्छे कर्म और उनके फल, मेरी सारी बुराइयाँ और अच्छाइयाँ ..... सब तुम्हें समर्पित करता हूँ| मुझे कोई मुक्ति नहीं चाहिए| चाहिए तो बस तुम्हारे ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम| उससे कम कुछ भी नहीं| मैं सदा तुम्हारे ह्रदय में रहूँ| फिर चाहे कितने भी ज्न्म और मृत्यु हो मुझे उससे कोई मतलब नहीं है|
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ॐ तत्सत ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
प्राणी का जन्म मृत्यु के लिए ही होता है, .... यह सनातन सत्य है| जन्म और मृत्यु के मध्य का समय ही जीवन है| विचारणीय विषय यह है कि इसकी सार्थकता यानि सर्वश्रेष्ठ उपयोग क्या हो सकता हैै? प्रत्येक प्राणी जो इस संसार में जन्म लेता है वह क्या बनेगा इसका उसे कोई ज्ञान नहीं होता| पर इतना तो उसे बोध होता ही है कि वह मृत्यु को एक न एक दिन अवश्य प्राप्त होगा| यही परम सत्य है|
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"जीवन और मृत्यु" क्या हमारे वश में है? पता नहीं कितनी बार हम जन्में और मरे हैं| कब तक यह चक्र चलता रहेगा? कुछ भी नहीं कह सकते| शास्त्र कहते हैं कि कर्म फल भोगने के लिए हम जन्म लेते हैं| पर एक कर्म फल भोगने के चक्कर में हज़ारों कर्मफल संचित कर लेते हैं| इस मायावी चक्र से कैसे मुक्ति पाएँ?
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श्रीमद्भागवत की कथा में राजा परीक्षित को जब यह ज्ञान हुआ कि आत्मा अजर-अमर है, तो उसका मृत्यु का भय समाप्त हो गया| मुक्ति की परिकल्पना ही एक असत्य है| आत्मा तो नित्य मुक्त है| अहंकार और मोह ही बंधन के कारण हैं| इनसे मुक्त होना ही मुक्ति है| अहं का पूर्ण समर्पण ही मुक्ति है| मन में कोई शुभ विचार आए तो उसे उसी दिन उसी समय पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए| कल पर टालना ही मृत्यु है|
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जो हमारे वश में ही नहीं है, उस पर हम हम क्या कर सकते है? पर जो हमारे वश में है वह तो इसी क्षण कर सकते हैं| सबसे बड़ी सेवा और सबसे महान कार्य जो हम जीवन में कर सकते हैं वह है ..... "परमात्मा को पूर्ण समर्पण और निज जीवन में उसे व्यक्त करने का प्रयास" ..... जो हमें निरंतर करना चाहिए|
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हे जगन्माता, तुम्हीं परमब्रह्म हो, तुम्ही परमशिव हो, तुम्ही विष्णु हो, तुम्हीं नारायण हो| मैं तुम्हें नहीं जानता, पर तुम मेरे ह्रदय में प्रेमरूप में स्थित हो, तुम मेरे ह्रदय का परम प्रेम हो| प्रेम रूप में तुम सदा मेरे साथ हो|
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मैं मेरे सारे बुरे-अच्छे कर्म और उनके फल, मेरी सारी बुराइयाँ और अच्छाइयाँ ..... सब तुम्हें समर्पित करता हूँ| मुझे कोई मुक्ति नहीं चाहिए| चाहिए तो बस तुम्हारे ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम| उससे कम कुछ भी नहीं| मैं सदा तुम्हारे ह्रदय में रहूँ| फिर चाहे कितने भी ज्न्म और मृत्यु हो मुझे उससे कोई मतलब नहीं है|
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ॐ तत्सत ! ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
25 May 2015
25 May 2015
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