Sunday 28 May 2017

अब मेरी कभी भी कोई भी इच्छा नहीं हो .....

 अब मेरी कभी भी कोई भी इच्छा नहीं हो .....
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मैं समान विचार और समान साधना पद्धति के लोगों का एक समूह बनाना चाहता था जो सप्ताह में कम से कम एक दिन एक निश्चित समय और निश्चित स्थान पर आकर मिले और कम से कम दो घंटे तक सामूहिक ध्यान करे जिसमें कुछ समय प्रार्थना, भजन और स्वाध्याय का भी हो|
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पर मैं मेरे इस उद्देश्य में विफल रहा| मैं इस बारे में मैं कोई बहाना नहीं बनाना चाहता| यह मेरे प्रयासों या मेरी क्षमता में कमी और मेरी विफलता ही थी|
बड़े नगरों में तो निष्ठावान साधकों के इस तरह के कई समूह हैं, पर छोटे स्थानों पर यह एक कठिन कार्य है| संभवतः यह मेरी नियती ही थी|
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कुछ साधकों को मैंने तैयार भी किया पर अपने व्यवसाय और नौकरी आदि के लिए वे दूर चले गए|
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एकांतवास, निःसंगत्व, वैराग्य आदि मेरे प्रारब्ध में नहीं थे| मन बड़ा बेचैन और अशांत रहने लगा| फिर एक विचार ने बड़ी शान्ति, स्थिरता और दृढ़ता प्रदान की| वह विचार था कि एकमात्र अस्तित्व परमात्मा का है, अन्य कोई तो है ही नहीं| जल की एक बूँद जैसे महासागर में मिलकर स्वयं महासागर बन जाती है, वैसे ही इस परिछिन्न आत्मा को अपरिछिन्न परमात्मा में समर्पित हो जाना चाहिए|
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यह संसार अपने नियमों से चलता है, न कि मेरी कामनाओं और अपेक्षाओं से| मेरा कुछ कामना करना ही गलत था| मैं कुछ नहीं करता, सब कुछ तो भगवान ही कर रहे हैं| जैसी भी उनकी इच्छा हो वह पूर्ण हो| इस विचार ने ही मुझे जीवित रखा है|
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हे प्रभु, अब मेरी कभी भी कोई भी इच्छा नहीं हो| कभी मेरी कोई इच्छा पूरी भी मत करना| कोई इच्छा जागृत ही न हो|
हे प्रभु, तुम महासागर हो, और मैं जल की एक बूँद हूँ जो तुम्हारे साथ एक है|
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ॐ तत्सत | ॐ ॐ ॐ ||

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